Saturday 25 July 2020

GHAZAL... BASHIR BADR.. MERE DIL KI RAAKH...

मेरे दिल की राख कुरेद मत, इसे मुस्करा के हवा न दे।
ये चिराग़ फिर भी चिराग़ है, कहीं तेरा हाथ जला न दे। 
Do not smile and disturb these ashes with a wand.
This lamp is just a lamp, it may burn your hand.
नए दौर के नए ख़्वाब हैं, नए मौसमों के गुलाब हैं।
ये मुहब्बतों के चिराग़ हैं, इन्हें नफ़रतों की हवा न दे।
New dreams of this era, roses of new season. 
These lamps are of love, let not hate throw sand. 
ज़रा देख चाँद की पत्तियों ने, बिखर बिखर के तमाम शब। 
तेरा नाम लिक्खा है रेत पर, कोई लहर आ के मिटा न दे। 
Moon has written your name with petals on sand all night. 
You watch the wave that comes, let it not disband. 
मैं उदासियाँ न सजा सकूँ, कभी जिस्मो जाँ के मज़ार पर। 
न दिए जलें मेरी आँख में, मुझे इतनी सख़्त सज़ा न दे।
Let sadness not alight, on my grave any night. 
No lamp to burn in eyes, such sentence do not hand. 
मिरे साथ चलने के शौक़ में, बड़ी धूप सर पे उठाएगा। 
तेरा नाक नक़्शा है मोम का, कहीं ग़म की आग घुला न दे।
In order to walk with me, you'll face a lot of sun. 
Your face cuts are of wax, might get melt offhand. 
मैं ग़ज़ल की शबनमी आँख में, ये दुखों के फूल चुना करूँ। 
मिरी सल्तनत मिरा फ़न रहे, मुझे ताजो तख़्त ख़ुदा न दे। 
Let me sort out sad flowers, from dew wet ghazal eyes. 
Let skill be my empire, on no throne to sit offhand. 

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