Sunday 31 January 2021

AZAM AMROHVI.. GHAZAL.. MEIN BHI INSAAN HUUN MERA JAZBAYE IISAAR NA KHENCH..

मैं भी इंसाँ हूँ मेरा जज़्ब ए ईसार ना खेंच।
डूबने वाले मेरे हाथ से पतवार ना खेंच। 

I am human, to my giving power, don't latch.
O drowned! From me rudder don't snatch.

तेरा दुश्मन है तेरी ज़ात के अंदर मौजूद। 
ग़ैर को अपना बना ग़ैर पे तलवार ना खेंच। 

Your enemy is present within yourself. 
Own rival, on him a sword don't attach. 

तेरे दीदार से मानूस नहीं हैं आँखें। 
मेरी आँखों से अभी हसरते दीदार ना खेंच

My eyes aren't yet used to your view. 
From my eyes, desire to see, don't detach.

धूप मीरास है तेरी ना हवा तेरी हे। 
अपने हमसाये से ऊँची कोई दीवार ना खेंच। 

Neither you have inherited sun nor wind. 
From neighbor let not your wall over match. 

अस्मे आज़म ने छुपाया है तुझे़ नामो नमूद। 
मुझ को ऐ पर्दानशीं बर-सर-ए-बाज़ार ना
खेंच। 

Azam's pride has kept you concealed. 
Veiled one! In mart, with me don't match. 

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