वन्देऽहं देवं तं श्रीतं कालं रन्तारं भासा यः।
रामः रामाधीः आप्यागः लीलाम् आर आयोध्ये वासे।।
एकः श्लोक अनुलोम
हिंदी रूपान्तरण
ढूँढें सह्य मलय गिरि वन में ।
ध्यान किए सीता का मन में ।
रावण वध कर आँय अयोध्या ।
रमण करें सिय संग महलन में ।
मैं पूजूँ श्री रामचन्द्र को।
तन मन कर अर्पित वन्दन में ।।
सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी मारामोराः ।
यस्साभालङ्कारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं द देवम् ।।
एकः श्लोक प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
मै हूँ रुक्मिणि कृष्ण शरण में।
जो आराध्य गोपियन मन में।
लक्ष्मी क्रीड़ास्थल उर जिन का।
झंकृत आभूषण आँगन में।
मैं तो उन की करूँ वन्दना।
जो श्री कृष्ण बसे हैं मन में।।
साकेताख्या ज्यायामासीत् या विप्रादीप्ता आर्यधारा।
पूः आजीत अदेवाद्याविश्वासा अग्र्यासावाशारावा।।
द्वौ श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
पुरी अयोध्या भू प्रांगण में।
ब्राह्मण विदु थे सब ग्रंथन में।
वैश्य रखें धनवान नगर को।
यह आधार पुरी का धन में।
अजसुत दशरथ राजा उस के।
शामिल देव होंय यज्ञन में।।
वाराशावासाग्र्या साश्वावाद्यावादेताजीरा पूः।
राधार्याप्ता दीप्रा विद्यासीमा या ज्याख्याता के सा।।
द्वौ श्लोक प्रतिलोम हिंदी पद्यानुवाद
द्वारिका थी समुद्र मध्यन में।
मोक्षप्राप्ति हो यहाँ निधन में।
ज्ञान और बल की यह सीमा।
सेना पूरी गज अश्वन में।
राधा के आराध्य कृष्ण थे।
इस नगरी के संचालन में।।
कामभारस्स्थलसारश्रीसौधा असौ धन्वापिका।
सारसारवपीना सरागाकारसुभूरिभूः।।
त्रयः श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
जो भी इच्छा हो जीवन में।
पूरण होय अवध महलन में।
गहरे कुएँ यहाँ बहुतेरे।
सारस की ध्वनि भरी गगन में।
सुन्दर बहुत महल नगरी के।
रक्तिम रज आए चरणन में।।
भूरिभूसरकागारासना पीवरसारसा।
का अपि न अनघसौध असौ श्रीरसालस्थभामका।।
त्रयः श्लोक प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
हैं चबूतरे सब भवनन में।
ब्राह्मण मगन हवन पूजन में।
ये त्रुटिहीन नगर के घर सब।
सूरज दिखे आम्र पत्रन में।
बड़े बड़े बहु कमल खिले हैं।
बसी द्वारिका ऐसी मन में।।
रामधाम समानेनम आगोरोधनम् आ ताम्।
नामहाम् अक्षररसं ताराभाः तु न वेद या।।
चत्वारः श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
जगमग अवध राम कांतिन में ।
ऊँचे भवन और वृक्षन में।
दिखें न सूर्य, चन्द्र,औ' तारे।
ऐसी प्रभा रामचन्द्रन में।
नष्ट पाप हों, पर्व मनें हैं।
अवध असीमित रहे सुखन में।।
यादवेनः तु भाराता संररक्ष महामना।
तां सःमानधरः गोमान् अनेमासमधामराः।।
चत्वारः श्लोक प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
कृष्ण सूर्य यादव वंशन में।
उत्तम नर, गौ के रक्षण में ।
यहाँ असीमित सुख ममृद्धि।
आती नहीं कहीं वर्णन में।
शील स्वभाव द्वारिका पालक।
दाता, संरक्षक हर क्षण में।।
यन् गाधेयः योगी रागी वैताने सौम्ये सौख्ये असौ।
तं ख्यातं शीतं स्फीतं भीमान आम अश्रीहाता त्रातम्।।
पञ्च श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
विश्वामित्र तप करें वन में।
राम करें रक्षा यज्ञन में।
शील, शान्त औ' ख्याति विभूषित।
अब सम्भव न होय विघ्नन में।
योगी, साधु, सौम्य मुनि ज्ञानी।
लीन शान्ति से यज्ञ, हवन में।।
तां त्राता हा श्रीमान आम अभीतं स्फीतं शीलं ख्यातं।
सौख्ये सौम्ये, असौ नेता वै गीरागी यःयोधे गायन।।
पञ्च श्लोक प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
नारद ऋषि प्रसिद्ध गायन में।
साहस दें योद्धा के मन में।
गुण सम्पन्न सभी विधि ज्ञानी।
कहलाते नेता ब्राह्मण में।
कृष्ण शील औ' शान्त दयामय।
है विख्यात कृपा जन गण में।।
मारमं सुकुमाराभं रसाज आप नृताश्रितं।
काविरामदलाप गोसम अवामतरा नते।।
षट् श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
सीता उपजी भूखण्डन में।
आनन्द दें अविराम कथन में।
भूमि समान शक्ति सहने की।
सीधी सत्य स्वभाव गुणन में।
सीता लक्ष्मिस्वरूपा ही थीं।
राम विष्णु के अवतारन में।।
तेन रातम् अवाम अस गोपलात् अमराविक।
तं आश्रित नृपजा सारभं रामा कुसुम रमा।।
षट् श्लोक प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
रुक्मिणि लक्ष्मी अवतारन में।
पति को पाँय कृष्ण रूपन में।
राजसुता थीं स्वयं रुक्मिणी ।
देव रहें जिन के रक्षण में।
नारद दें श्री कृष्णचंद्र को।
पारिजात सुरभित पुष्पन में।।
रामनाम सदा खेदभावे दयावान अतापीनतेजाः रिपौ जानते।
कादिमोदासहाता स्वभासा रसामे सुगः रेणुकागात्रजे भूरुमे।।
सप्त श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
दया राम के छाई मन में।
सूर्य समान दमकते वन में।
सुगम, कष्ट पाते सन्तन को।
नष्ट करें सब राक्षस क्षण में।
परशुराम जिन पृथ्वी जीती।
शान्त हुए हरि, ऋषि दर्शन में।।
मेरुभूजेत्रगा काणुरे गोसुमे ।सा अर्सा भास्वता हा सदा मोदिका।
तेन वा पारिजातेन पीता नवा यादवे अभात अखेदा. समानामरा।।
सप्त श्लोक प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
गन्ध न कुछ धरती कुसुमन में।
पारिजात उत्तम पुष्पन में।
नारद लाए, दिया कृष्ण को।
गंध बस गई रुक्मिणि मन में।
पुष्प कान्ति से दिव्य देह पा ।
खेद न कुछ, मन है कृष्णन में।
सारसासमघात अक्षिभूम्ना धामसु सीतया।
साधु असौ इह रेमे क्षेमे असुर आरसुसारहा।।
अष्ट श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
राक्षस नष्ट करें वे क्षण में।
स्थिर भाव है इन नैनन में।
कमल समान राम की आँखें।
किन्तु न हों ये विचलित रण में।
जीवन इतना सहज अवध में।
राम सहित सीता महलन में।।
हारसारसुमा रम्यक्षेमेर इह विसाध्वसा।
स अतसीसुमधाम्ना भूक्षिता धाम ससार सा।।
अष्ट श्लोक प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
रुक्मिणि घर समृद्धि सुखन में।
पारिजात हार कण्ठन में ।
लौट रहीं निज धाम रुक्मिणि।
रही न कोई इच्छा मन में।
कृष्ण सजे अतसी फूलों से।
वे भयहीन कृष्ण रक्षण में।।
सागसा भरताय इभमाभाता मन्युमत्तया।
स अत्र मध्यमय तापे पोताय अधिगता रसा।।
नव श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
कैकेई रानी मध्यम में।
अग्नि क्रोध की जलती मन में।
राजा बनने का अधिकारी।
नहीं भरत सम अवधपुरन में।
राम का नहीं , राज्य भरत का।
सम्भव होय अवध प्रांगण में।।
सारतागधिया तापोपोताया मध्यमत्रसा।
यात्तमन्युमता भामा भयेता रभसागसा।।
नव श्लोक प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
दुःखी सत्यभामा थी मन में।
वह सुमध्यमा थी महलन में।
पारिजात तो मुझको देते।
क्रोध भरा साजन पर मन में।
भग्न हृदय हो, बन्द द्वार कर।
जा कर बैठ गई अनशन में।।
तानवात आपका उमाभा रामे काननद आ सा।
या लता अवृद्धसेवाका कैकेयी महद अहह।।
दश श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
सूखी बेल समान भवन में।
तज सुख पीत भई महलन में।
छोड़ी सेवा वृद्ध सजन की।
अभिषेकन के ही खण्डन में।
अहा राम अब वन को जाएँ।
चाह प्रबल कैकेयी मन में।।
हह दाहमयी केकैकावासेद्धवृतालया।
सा सदाननका आमेरा भासा कोपदवानता।।
दश श्लोक प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
सुन्दर मुख व प्रज्वलित मन में।
जैसे आग लगी हो वन में।
विचलित पति के पक्षपात से।
दुःखी सत्यभामा महलन में।
मोरों का आवास जहाँ था।
जा बैठी, हो बन्द भवन में।।
वरमानदसत्यासह्रीतपित्रादरात् अहो।
भास्वर स्थिरधीरः अपहारोराः वनगामी असौ।।
एकादश श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
राम धीर स्थिर हैं महलन में।
पितु शर्मिन्दा प्रण बन्धन में।
कर वन गमन मान रखते हैं।
आदर बहुत पिता का मन में।
गहनों बिन भी आभा इतनी।
विद्युत रेखा जाती वन में।।
सोम्यगानवरारोहापरः धीरः स्थिरस्वभावाः।
हो दरात् अत्रि आपितह्री सत्यासदनम् आर वा।।
एकादश श्लोक प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
सतभामा रुचि संगीतन में।
कृष्ण प्रेम करते हैं मन में।
धीर, स्थिर गुण हैं माधव के।
फिर भी भय सा उन के मन में।
आती प्रीति, शर्म दोनों ही।
हरि जाते उन के महलन में।।
या तयानघधीतादा रसायाः तनया दवे।
सा लगता हि वियाता ह्रीसतापा न किल ऊनाभा।।
द्वादश श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
सीता आई मातृ सदन में
पावन करती शास्त्र पठन में
लज्जित हैं क्या किया मात ने ।
किन्तु न प्रकटा कुछ नैनन में।
आभा थी पहले सी मुख पर।
पति के साथ चल पड़ी वन में।।
भान् अलोकि न पाता सः ह्रीता या विहितागसा।
वेदयानः तया सारदात धीघनया अनया।।
द्वादश श्लोक प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
भामा अग्रणि थीं बुधिजन में।
पारिजात सुन्दर पुष्पन में।
दिया कृष्ण ने उसे सौत को।
क्षोभ बहुत था उस के मन में।
देखा नहीं उन्हें जी भर के।
गरुड़ रहें जिन के वाहन में।।
रागिराधुतिगर्वादारदाहः महसा हह।
यान् अगात भरद्वाजम् आया ई दमगाहिनः।।
त्रयोदश श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
मग्न राम असुरहिं हनन में।
रक्षा कर मुनिजन की वन में।
भेंट करें मुनि भरद्वाज से।
ये सम्मानित सब मुनिगण में।
राक्षस क्रूर बहुत बलशाली।
इनको रघुवर जीतें रण में।।
मो हि गाम् अदसीयामाजत् व आरभत गाः न या।
हह सा आह महोदार दार्वागतिधुरा गिरा।।
त्रयोदश श्लोक प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
सतभामा चुप थी महलन में।
ध्यान न देती कृष्ण कथन में।
वृक्ष उखाड़ स्वर्ग से लाऊँ।
आरोपित हो इस कानन में।
हुई अचम्भित जब हरि बोले।
पारिजात लाऊँ महलन में।।
यातुराजितभाभारं द्यां व मारुतगंधगम्।
सः अगम् आर पदं यक्षतुङ्गाभः अनघयत्रया।।
चतुर्दश श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
ऋषि अगस्त्य उत्तम मुनिगण में।
है प्रभाव उन का इस वन में।
राक्षस रहते दूर यहाँ से।
आभा ऐसी है कानन में।
चित्रकूट की छटा निराली।
है त्रुटिरहित गति रामन में।।
यात्रया घनभः. गातुं क्षयदं परमागसः।
गन्धगम् तरुम् आव द्यां रंभाभादजिरा तु या।।
चतुर्दश श्लोक प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
बादल सी आभा कृष्णन में।
क्षोभ न हो सतभामा मन में।
रंभा सी अप्सरा चतुर्दिश।
घूमें इसी स्वर्ग कानन में।
पारिजात की गन्ध निराली।
फैल रही है इस उपवन में।।
दण्डकां प्रदमः राजाल्यः हतामयकारिहा।
सः समानवतानेनोभोग्याभः न तदा आ न।।
पञ्चदश श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
जीता परशुराम को क्षण में।
राम आ गए दण्डकवन में।
उनके वश जो पापरहित हैं।
मानवता के आभूषण में।
जानें जिन्हें दिव्य आत्मा ही।
राम फिरें मानव के तन में।।
न सदातनभोग्याभः नो नेता वनम् आस सः।
हारिकायमताहल्याजारामोदप्रकाडजम्।।
पञ्चदश श्लोक प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
परमानन्दित सारे मन में।
कृष्ण आ गए नन्दनवन में।
हरि की सी कर सुन्दर काया।
इन्द्र अहिल्या करी वशन में।
कृष्ण सदा सब के ही स्वामी।
आए देवराज कानन में।।
सः अरम् आरत् अनज्ञानः वेदेराकण्ठकुंभजम्।
तं द्रुसारपटः अनागाः नानादोषविराधहा।।
षोडश श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
मुनि अगस्त्य रहते इस वन में।
वाणि प्रतिध्वनित है वेदन में।
वध विराध का किया राम ने।
आनन्दित सब दण्डकवन में।
तपसी सी पहनें द्रुमछाला।
दोष न कुछ भी था रामन में।।
हा धराविषदः नानागानाटोपरसात द्रुतम्।
जंभकुण्ठकराः देवेनः अज्ञानदरम् आर सः।।
षोडश श्लोक प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
इन्द्रदेव अधिपति देवन में।
धरा वृष्टि इन के हाथन में।
जम्भासुर वध किया इन्द्र ने।
मन रमता है संगीतन में।
जाना कृष्ण यहाँ आए हैं ।
छाया है भय इन के मन में।।
सागमाकरपाता हाकङ्केनावनतः हि सः।
न समानर्द मा ड्रामा लङ्काराजस्वसा रतम्।।
सप्तदश श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
रक्षक मुनिजन के हर वन में।
ज्ञानी जो थे सब वेदन में।
विधिवत शीश नवाते रघुवर।
कंक राम के रहे चयन में।
आकर्षित बहना रावण की।
चाहे इन को गठबन्धन में।।
तं रजासु अजराकालं न आरामर्दनम् आ न।
सः हितः अनवनाकेकं हाता अणरकं आगसा।।
सप्तदश श्लोक प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
यूँ तो इन्द्र कृष्ण मित्रन में।
पारिजात प्रत्यारोपण में।
कृष्ण अजर अवतरित धरा पर।
फिर भी क्रोधित उन पर मन में।
यूँ न लुटे सम्पदा स्वर्ग की।
शस्त्र उठा कर उतरे रण में।।
तां स गोरमदो श्रीदः विग्राम् असदरः अतत।
वैरम् आ पलाहारा विना आ रविवंशके।।
अष्टादश श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
शूर्पणखा क्रोधित थी मन में।
कटी नाक उसकी जब वन में।
लक्ष्मण दाँयी भुजा राम की।
भय कैसे हो उनके मन में?
मांसाहारी थी वह नारी।
वैर बढ़ा रघुकुल रावण में।
केशवं विरसानाविः आह आलापसमारवैः।
ततरोदसम् अग्राविदः श्रीदः अमरगः असताम्।।
अष्टादश श्लोक प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
प्रमुदित थे पर्वत पङ्खन में।
आ बैठें जह्ँ तहँ जनगण में।
काटे पङ्ख वज्र से सारे।
राजा इन्द्र सभी देवन में।
क से ब्रह्म इसा से शिव हैं।
केशव केसी दैत्य दमन में।
गोद्युगोमः स्वमायः अभूत् अश्रीगखरसेनया।
सह साहवधारः अविकलः अराजत् अरातिहा।।
नवदश श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
उतरी खर की सेना रण में।
राम अकेले थे क्षेत्रन में।
सेना ने निज ख्याति गँवाई।
भागी डर कर चहुँदिस वन में।
और राम का इसी युद्ध से।
फैला यश भू और गगन में।।
हा अतिरादजरालोक विरोधावहसाहस।
यानसेरखग श्री भूयः म स्वम् अगः द्युगः।।
नवदश श्लोक प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
इन्द्र कहें यह नन्दनवन में।
पारिजात शुभ है स्वर्गन में।
देवों की मत ख्याति मिटाएँ।
भू पर इस के आरोपण में।
गरुड़ वेद की ही प्रतिश्रुति हैं।
जो कि आप के हैं वाहन में।।
हतपापचये हेयः लङ्केशः अयम् असारधीः।
रजिराविरतेरापः हा हा अहम् ग्रहम् आर घः।।
विंशतिः श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
राम ने मारा खर को रण में।
रावण ने यह सोचा मन में।
राक्षस मेरे संग बहुतेरे।
क्रूर, मस्त मय पी जीवन में।
धावा करें, घेर लें उस को।
जिस ने मारे राक्षस वन में।।
घोरम् आह ग्रहों हाहापः अरातेः रविवाजिराः।
धीरसामयशोके अलं यः हेये च पपात हः।।
विंशतिः श्लोक प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
नृप गन्धर्व और देवन में।
दमक रहे स्वर्णाभूषण में।
दुःख समाया हुआ हृदय में।
इससे भूल हुई समझन में।
क्यों यह देवराज ने सोचा?
लेंगे माधव को बन्धन में।।
ताटकेयलवात् एनोहारी हारिगिरि आस सः।
हा असहायजना सीता अनाप्तेना अदमनाः भुवि।।
एकाविंशतिः श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
पाप नष्ट होते त्रिभुवन में।
राम नाम जब लेते मन में।
चिल्लाया मारीच रामस्वर।
लक्ष्मण रक्षा करना वन में।
सीता आर्तनाद यह सुन कर।
विचलित राम बिना निर्जन में।।
विभुना मदनाप्तेन आत आसीनाजयहासहा।
सः सराः गिरि हारी ह नो देवालयके अटता।।
एकाविंशतिः श्लोक प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
बहु समृद्ध इन्द्र हैं धन में।
पङ्खहीन गिरि सब निर्जन में।
ठनी इन्द्रसुत कृष्णतनय में।
उतरे इन्द्र पुत्र पक्षन में।
ले प्रद्युम्न निज संग कृष्ण भी।
विचरें सभी ओर स्वर्गन में।।
भारमा कुदशाकेन आशराधीकुहकेन हा।
चारुधीवनपालोक्या वैदेही महिता हृता।।
द्वाविंशतिः श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
सीता लक्ष्मी सभी गुणन में।
पूजित हैं हर विधि जन गण में।
रावण नीच विधा पर उतरा।
हुआ सफल छल सिया हरण में।
उठा लिया बैठाया रथ पर।
देव चुप रहे फिर भी वन में।।
ता हृताः हि महीदेवैक्यालोपानवधीरुचा।
हानकेह कुधीराशना केशा अदकुमारभाः।।
द्वाविंशतिः श्लोक प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
हुए अशान्त प्रद्युम्न मन में।
देख इन्द्र का निश्चय रण में।
भगते देव लौट कर आए।
देखे इन्द्र देव रक्षण में।
देव सभी नकली योद्धा हैं।
पीठ दिखाएँ रण प्राङ्गण में।।
हारितोयदभः रामावियोगे अनघवायुजः।
तं रुमामहितः अपेतामोदाः असारज्ञः आम यः।।
त्रयोविंशतिः श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
सुन्दर राम कान्ति मेघन में।
हनुमत साथ सीय बिन वन में।
रुमा छिनी सुग्रीव दुःखी हैं।
भूले बुद्धि और बल क्षण में।
वालि ने सताया है इतना।
राम बचाएँ इन को रण में।।
यः अमराज्ञः असादोमः अतापेतः हिममारुतम्।
जः युवा घनगेयः विम आर आभोदयतः अरिहा।।
त्रयोविंशतिः श्लोक प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
मूर्छित हुए कृष्णसुत रण में।
देव बढ़े लेने बन्धन में।
थपकी लागी शीत पवन की।
तत्क्षण वे आए चेतन में।
पुनः प्रहार किया देवों पर।
और हराया उन को रण में।।
भानुभानुतभाः वामा सदामोदपरः हतं।
तं ह तामरसाभाक्षः अतिराता अकृत वासविम्।।
चतुर्विंशतिः श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
आभा इतनी थी रामन में।
फीकी लगे प्रभा सूर्यन में।
कमल समान राम की आँखें।
दें आनन्द सिया के मन में।
वाली इन्द्रपुत्र बलशाली।
मार गिराया उस को रण में।।
वि सः वासकृतारातिक्षोभासारमताहतं।
तं हरोपदमः दासम् आव आभतनुभनुभाः।।
चतुर्विंशतिः श्लोक प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
शिव न कृष्ण से जीते रण में।
आभा इतनी कब सूर्यन में?
फड़काए जब पंख गरुड़ ने।
हो गई क्षीण शक्ति देवन में।
निज वाहन पर वार हुए तो।
कृष्ण कहाँ चुप रहते रण में?
हंसजारुद्धबलजा परोदारसुभा अजनि।
राज रावण रक्षोरविघाताय रमा आर यम्।।
पंचविंशतिः श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
राम सुग्रीव मैत्रि बन्धन में।
रक्षा इक दूजे की रण में।
है राजा और सेना सारी।
राम हेतु जीवन अर्पण में।
रावण वध कर यश पाएँगे।
वानर रामचन्द्र संग रण में।।
यं रमा आर यताघ विरक्षोरणवराजिर।
निजभा सुरद रोपजालबद्ध रुजासहम्।।
पंचविंशतिः श्लोक प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
बाण वृष्टि सह कर भी रण में।
कृष्णाभा क्षयकर असुरन में।
जयलक्ष्मी का वरण कर रहे।
कर परास्त अरिगण को रण में।
कान्ति मनोहर मधुसूदन की।
मिटती नहीं किसी अनबन में।।
सागरतिगम् आभातिनाकेशः असुरमासहः।
तं सः मारुतेजम् गोप्ता अभात् आसाद्य वतः अजगम्।।
षड्विंशतिः श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
इन्द्राधिक कीर्ति रामन में।
सह नहीं सके प्रगति असुरन में।
रक्षा में हनुमान साथ हैं।
सागरतट सहाद्रि शेषन में।
ख्याति अपार मिली हनुमत को।
सागर पार गए लङ्कन में।।
जं गतः गदी असादाभाप्ता गोजं तरुम् आस तम्।
हः समारसुशोकेन अतिभामागतिः आगस।।
षड्विंशतिः श्लोक प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
कृष्ण क्रोध प्रद्युम्न दुःखन में।
क्षति पहुँची है जिस को रण में।
पारिजात अरु गदा हाथ हैं।
तरु जो उपजा है स्वर्गन् में।
कीर्ति अशेष सदा ही उन की।
विजयी कृष्ण रहेंगे रण में।।
वीर वानरसेनस्य त्राता अभात् अवतार हि सः।
तोयधो अरिगोयादसि अयतः नवसेतुना।।
सप्तविंशतिः श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
गहरा नीर है समुद्रन में।
है बल बहुत वारि - जीवन में।
त्राता राम वानरों के हैं।
तैरें पत्थर हरि सङ्गन में।
पुल बनने पर वानर सेना।
पार करे, पहुँचे लङ्कन में।।
नातु सेवनतः यस्य दयागः अरिवधायतः।
स हि तावत् अभत त्रासी अनसेः अनवारवी।।
सप्तविंशतिः श्लोक प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
जो हैं हरि की कीर्ति श्रवण में।
जीतें वे अरिदल से रण में।
करते मधुस्वर से हरि गायन।
कभी न हारें संसारन में।
खोते कान्ति, शान्ति उन के बिन।
डरते अरि से बिन शस्त्रन में।।
हारिसाहसलङ्केनसुभेदी महितः हि सः।
चारुभूतनुजः रामः अरम् आराधयदार्तिहा।।
अष्टविंशतिः श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
अद्भुत शक्ति राम बाणन में।
किया पराजित रावण रण में।
सीता सुन्दर भूमिसुता थी।
रामचन्द्र सङ्गिनि जीवन में।
उन की रक्षा की श्रीहरि ने।
जो आए उन की शरणन में।।
हा आर्तिदाय धराम् आर मोराः जः नुतभूः रुचा।
सः हितः हि मदीभे सुनाके अलं सहसा अरिहा।।
अष्टविंशतिः श्लोक प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
थे प्रद्युम्न कृष्ण रक्षण में।
मारा अरिगण को स्वर्गन में।
नहीं कर सका कुछ ऐरावत।
था मदमस्त स्वर्ग प्राङ्गण में।
जिन के उर पर लक्ष्मि विराजे।
कौन हराए उन को रण में ?
नालिकेर सुभाकारागारा असौ सुरसापिका।
रावणारिक्षमेरा पूः आभेजे हि न न अमुना।।
नवविंशतिः श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
आएँगे श्रीहरि अवधन में ।
सीता संग पुनः आँगन में।
वृक्ष नारियल चहूँओर हैं ।
बहुरंगीं अवधी भवनन में।
यह नगरी है रामलला की।
करते राज सभी के मन में।।
न अमुना ने इ जेभेर पूः आमे अक्षरिणा वरा।
का अपि सारसुसौरागा राकाभासुरकेलिना।।
नवविंशतिः श्लोक प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
नगर द्वारिका उत्सव पन में।
जीतें हाथी अरि को रण में।
कृष्ण साहसी धर्म वीर हैं।
गोपियन साथी बालकपन में।
पारिजात को आन द्वारिका।
शान बढ़ाई है नगरन में।।
सा अग्र्यतामरसागाराम् अक्षामा घनभा आर गौः।
निजदे अपरजिति आ श्री रामे सुगराजभा।।
त्रिशत् श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
कान्ति न अवध आय वर्णन में।
लक्ष्मी बसतीं इस नगरन में।
भरी अयोध्या कमल पुष्प से।
आभा फैली सभी दिशन में।
दें अपना सर्वस्व राज्य को।
राम रहे अपराजित रण में।।
भा अजरग सुमेरा श्रीसत्याजिरपदे अजनि।
गौरभा अनघमा क्षामरागा स अरमत अग्र्यसा।।
त्रिशत् श्लोक प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
पारिजात तरु था स्वर्गन में।
फूले सतभामा प्राङगण में।
उसकी आभा वैमनस्य को।
मिटा चुकी सब के ही मन में।
रुक्मिणि और सत्यभामा अब।
आन लगीं कृष्णन वक्षन में।।
बहुत ही अच्छा अनुवाद है
ReplyDeleteBahoot khoob.
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