Sunday 29 September 2024

GHAZAL.. ALLAMA IQBAL... KABHI AE HAQIQAT-E-MUNTAZIR! NAZAR AA LIBAS-MAJAAZ MEIN


Kabhi Ae Haqiqat-e-Muntazir! Nazar Aa Libas-e-Majaz Mein
Ke Hazar Sajde Tarap Rahe Hain Meri Jabeen-e-Niaz Mein

For once, O awaited Reality, reveal Yourself in a form material,
For a thousand prostrations are quivering eagerly in my submissive brow.

Tarb Ashnaye Kharosh Ho, Tu Nawa Hai Mehram-e-Gosh Ho
Woh Surood Kya Ke Chupa Huwa Ho Sakoot-e-Parda-e-Saaz Mein

Know the pleasure of tumult: thou art a tune consort with the ear!
What is that melody worth, which hides itself in the silent chords of the harp.


Tu Bacha Bacha Ke Na Rakh Isse, Tera Aaeena Hai Woh Aaeena
Ke Shikast Ho To Aziz Tar Hai Nigah-e-Aaeena Saaz Mein

Do not try to protect them, your mirror is the mirror
Which would be dearer in the Maker's eye if they broken are


Dam-e-Tof Karmak-e-Shama Ne Ye Kaha Ke Woh Asar-e-Kuhan
Na Teri Hikayat-e-Souz Mein, Na Meri Hadees-e-Gudaz Mein

During circumambulation the moth exclaimed, "Those past effects
Neither in your story of pathos, nor in my tale of love are"


Na Kaheen Jahan Mein Aman Mili, Jo Aman Mili To Kahan Mili
Mere Jurm-e-Khana Kharab Ko Tere Ufuw-e-Banda Nawaz Mein

My dark misdeeds found no refuge in the wide world—
The only refuge they found was in Your Gracious Forgiveness


Na Woh Ishq Mein Raheen Garmiyaan, Na Woh Husn Mein Raheen Shaukiyan
Na Woh Ghaznavi Mein Tarap Rahi, Na Kham Hai Zulf-e-Ayaz Mein

Neither love has that warmth, nor beauty has that humour
Neither that restlessness in Ghaznavi nor those curls in the hair locks of Ayaz are,


Jo Mein Sar Basajda Huwa Kabhi To Zameen Se Ane Lagi Sada
Tera Dil To Hai Sanam Ashna, Tujhe Kya Mile Ga Namaz Mein

Even as I laid down my head in prostration a cry arose from the ground:
Your heart is in materialism, no rewards for your prayers are.
Tarb Ashnaye Kharosh Ho, Tu Nawa Hai Mehram-e-Gosh Ho
Woh Surood Kya Ke Chupa Huwa Ho Sakoot-e-Parda-e-Saaz Mein

Know the pleasure of tumult: thou art a tune consort with the ear!
What is that melody worth, which hides itself in the silent chords of the harp.


Tu Bacha Bacha Ke Na Rakh Isse, Tera Aaeena Hai Woh Aaeena
Ke Shikast Ho To Aziz Tar Hai Nigah-e-Aaeena Saaz Mein

Do not try to protect them, your mirror is the mirror
Which would be dearer in the Maker's eye if they broken are


Dam-e-Tof Karmak-e-Shama Ne Ye Kaha Ke Woh Asar-e-Kuhan
Na Teri Hikayat-e-Souz Mein, Na Meri Hadees-e-Gudaz Mein

During circumambulation the moth exclaimed, "Those past effects
Neither in your story of pathos, nor in my tale of love are"


Na Kaheen Jahan Mein Aman Mili, Jo Aman Mili To Kahan Mili
Mere Jurm-e-Khana Kharab Ko Tere Ufuw-e-Banda Nawaz Mein

My dark misdeeds found no refuge in the wide world—
The only refuge they found was in Your Gracious Forgiveness


Na Woh Ishq Mein Raheen Garmiyaan, Na Woh Husn Mein Raheen Shaukiyan
Na Woh Ghaznavi Mein Tarap Rahi, Na Kham Hai Zulf-e-Ayaz Mein

Neither love has that warmth, nor beauty has that humour
Neither that restlessness in Ghaznavi nor those curls in the hair locks of Ayaz are,


Jo Mein Sar Basajda Huwa Kabhi To Zameen Se Ane Lagi Sada
Tera Dil To Hai Sanam Ashna, Tujhe Kya Mile Ga Namaz Mein

Even as I laid down my head in prostration a cry arose from the ground:
Your heart is in materialism, no rewards for your prayers are.

Friday 27 September 2024

GHAZAL.. KAIF BHOPALI.. DAAGH DUNIYA NE DIYE ZAKHM ZAMANE SE.MILE.....

दाग़ दुनिया ने दिए ज़ख़्म ज़माने से मिले
हम को तोहफ़े ये तुम्हें दोस्त बनाने से मिले

People gave wounds, scars world had set. 
This was a gift when as a friend you met. 

हम तरसते ही तरसते ही तरसते ही रहे
वो फ़लाने से फ़लाने से फ़लाने से मिले

While I kept longing and longing for long. 
With this one, that and that one, you met. 

ख़ुद से मिल जाते तो चाहत का भरम रह जाता
क्या मिले आप जो लोगों के मिलाने से मिले

Meeting on your own, doubt of desire could be. 
Is it a meeting, if through others you met? 

माँ की आग़ोश में कल मौत की आग़ोश में आज
हम को दुनिया में ये दो वक़्त सुहाने से मिले

Yesterday in mother's, today in death' s embrace,
These were times of joy for me, world  set. 

कभी लिखवाने गए ख़त कभी पढ़वाने गए
हम हसीनों से इसी हीले बहाने से मिले

For writing or reading letters, I approached them. 
Through these excuses, with cuties I met. 

इक नया ज़ख़्म मिला एक नई उम्र मिली
जब किसी शहर में कुछ यार पुराने से मिले

New wound was sustained, a new life retained,
When in a city, some old friends I had met. 

एक हम ही नहीं फिरते हैं लिए क़िस्सा-ए-ग़म
उन के ख़ामोश लबों पर भी फ़साने से मिले

I alone, don't carry the burden of grief tale. 
On her silent lips too, some tales were set. 

कैसे मानें कि उन्हें भूल गया तू ऐ 'कैफ़'
उन के ख़त आज हमें तेरे सिरहाने से मिले

How to believe, you have forgotten her 'Kaif'? 
Her letters were on your headend, we bet. 

Transcreated by Ravi Maun 
 

Thursday 26 September 2024

श्रीराम दशावतार... मूल भाषा कन्नड़... कवि श्री प्रदीप श्रीनिवासन... हिन्दी पद्यानुवाद रवि मौन

 यह केवल श्रीराम का नहीं मनुज अवतार।
एक रूप में देख ले जगत सभी अवतार।। 

विश्वासी भक्तों की जो पकड़े है जीवन नैया। भवसागर के पार लगाने वाले मत्स्य खिवैया।। 

कूर्मरूप से तीन लोक का भार उठाने वाले।
विचलित हुए बिना ही ये हैं इस जग के रखवाले।।

दुःखी व बन्दी भूमि सुता के दुःख को हरने वाले।
यही भौमि- वाराह, कष्ट धरती माता क्यों पा ले?

जंगल में सोते से इक दिन विश्वामित्र जगाएँ। 
हे नरसिंह उठो! यह मधुर कण्ठ से गुरुवर गाएँ।।

झुकें बड़ों के सम्मुख हो विनम्र, वामन बन जाएँ।
वही त्रिविक्रम हो सागर पर शिला सेतु बनवाएँ।।

हर औ' हरि के चापों को यों सहज उठा लें राम।
क्रोध, अंश सत दोनों खोएँ, ऋषिवर परशुराम।।

बाली को पीछे से मारा, करें बुद्धि उपयोग।
बुद्ध बने यूँ, मित्र कर सके स्वयं राज उपभोग।।

शबरी के झूठे बेरों को खाकर दिया स्वधाम। 
चिउड़े खाकर ज्यों सुदाम को देते कृष्ण सुधाम।। 

वन स्थल में चौदह सहस्त्र को खड़े अकेले मारें। 
रावण का ससैन्य वध झलक कल्कि रूप की धारें।। 

यह केवल श्रीराम नहीं हैं, दशविध रूप दिखाएँ।
सार्व भौम हैं सौम्य रूप प्रियदर्शन सुधा पिलाएँ।। 

Sunday 22 September 2024

भक्त पर कृपा...... रवि मौन

हरि ने अपने भक्त को दे वानर का रूप।
ग्रहण प्रेम से कर लिया भीषण शाप स्वरूप। 
लज्जित होकर भक्त गिर गया श्रीचरणों में आन। 
शाप मिला, पर मिट गया नारद का अभिमान।। 

Tuesday 17 September 2024

माखनचोर हमारा कान्हा , कृष्ण हमारे माखनचोर... मूल कन्नड़ कवि... के एस निसार अहमद... हिन्दी पद्यानुवाद

 

पल्लवी...माखनचोर हमारा कान्हा

                 कृष्ण हमारे माखनचोर

अनुपल्लवी...

अपने घर पर माखन चोरी करते गिरे कन्हाई।

घुटना फूला मटकी फूटी ध्वनि चहुँ दिस गहराई।

माँ डाँटेगी यही सोच कर तुरत कन्हैया डर गया।

यही सोच कर कान्हा की आँखों में पानी भर गया।

चरण.....

माता सुन कर दौड़ी आई आँखों में था रोष।

क्षण भर में काली सा घूरा समझा सुत का दोष।

चतुर चोर था किन्तु उसे मैया को दिखलाना था।

चारों ओर लगा था माखन माँ को मुस्काना था।

बचे दण्ड से, छोड़ श्वास तब नीले माखनचोर।

हँसे, पूर्ण चन्दा सी कान्ति फैल गई चहुँ ओर।

कृष्ण करें आकर्षण सहज बाल सा इनका हास।

आशा है वे भी हँसें जिन्हें प्रिय परिहास।

कविता भाषा... कन्नड़

कवि... के. एस. निसार अहमद

हिन्दी पद्यानुवाद.. रवि मौन

Friday 13 September 2024

श्री कृष्ण प्रश्नावली..मूल भाषा कन्नड़. कवि... श्री प्रदीप श्रीनिवासन.... हिन्दी पद्यानुवाद

 

श्री कृष्ण प्रश्नावली भाग एक:

मिट्टी क्यों खा रहे कन्हैया? कहें डाँटती जसुमति मैया!

तो आक्षेप वाणि में लाकर। कहने लगे कृष्ण झुँझला कर।

तुम ही तो कहती हो माता। मिट्टी में रस बहुत समाता।

इसे खींच कर पौधे बढ़ते। सब्ज़ी खाकर हम भी बढ़ते।

आज मुझे ये सूझा माता। थोड़ा सार रास नहीं आता।

यदि मैं सीधी मिट्टी खाऊँ। रस पा शीघ्र बड़ा हो जाऊँ।

ठीक नहीं हो तुम भी माता। भेद-भाव ही करना आता।

विष पीते जो शङ्कर माता। प्रतिदिन उन्हें पूजना भाता।

छोटा बालक मिट्टी खाता। उसे डाँटती हो तुम माता।

श्री कृष्ण प्रश्नावली भाग दो:

बेटे की बातों को सुन कर। मची खलबली माँ के अन्दर।

सब आरोप लगाती गोरी। तुम माखन करते हो चोरी।

अपने घर भी तो है माखन। क्यों चोरी हो औरों का धन?

इस से तो माटी ही खालो। मत चोरी की आदत डालो।

मैया सभी ग्राम के अन्दर। करें ठिठोली मुझ को तक कर।

गोरे पिता गोरी माता। काला रंग कहाँ से आता?

मेरे मित्र चाहने वाले। दें सलाह तू माखन खाले।

माखन होता सादा सुन्दर। कान्हा इसको देखो खाकर।

खाओ माखन सब के संग। तुम भी पा लो गोरा रंग।

अपनी गाय स्वयम् ही कारी। कैसे त्वचा करे उजियारी?

खाया चोरी कर के माखन। मुझको पाना है तुमसा तन।

श्री कृष्ण प्रश्नावली भाग तीन

सुनी चतुरता भरी बात जब। माता हर्षित, विस्मित थी तब।

क्या यह है मेरा ही बेटा? कहा तुम्हीं बतलाओ बेटा।

सन्तों ने ये मुझे कहा था। नहीं सिर्फ़ यह तेरा बेटा।

यह पर तत्व यही है ब्रह्मा। देखो लीला समझो अम्मा।

सोता है वट के पत्ते पर। पैर अँगूठा मुख में रख कर।

सन्त कहें जो सच है माता। वे जानें मैं जान न पाता।

उनको यदि अमृत भी दोगी। तो भी उसे न लेंगे योगी।

चरणकमल का रस पीते हैं। इसको ही पी कर जीते हैं।

यह कौतूहल मुझमें पला । मेरे पाँव में क्या है भला।

रखा उसको मुँह में ला कर। रहूँ लचीला शिशु तन पा कर।

बातें सुन चुप हुईं ब्रह्माणी। ब्रह्म जनक बालक यह ज्ञानी।

यह मेरा ही बेटा है क्या। विस्मित हो कर माँ ने देखा।

अगले ही पल ढुलमुल था सब। ढका बुद्धि को ममता ने तब।

त्रिभुवन के पालक लाल हुए। माता के आकर लगे गले।

क्षण भर पहले जो भक्त रही। वे जसुमति मैया तुरत बनी।

मूल कविता भाषा कन्नड़

कवि श्री प्रदीप श्रीनिवासन

Monday 2 September 2024

JAVED AKHTAR.. GHAZAL.. MISAAL ISKI KAHAAN HAI KOI ZAMAANE MEIN....

मिसाल इस की कहाँ है कोई ज़माने में।
 कि सारे खोने के ग़म पाए हमने पाने में 

Nowhere can  an example be cited of this state. 
That all grieves of loss could to winnings relate. 

जो मुन्तज़र न मिला वह तो हम हैं शर्मिन्दा
हमीं ने देर लगा दी पलट के आने में 

Well, I am ashamed that she could not wait.
Took far too long to look back at her state. 

लतीफ़ था वो तसव्वुर से ख़्वाब से नाज़ुक
गँवा दिया उसे हमने ही आज़माने में 

Softer than thought, more delicate than dream
I lost her out of my questioning trait. 

झुका दरख़्त हवा से तो आँधियों ने कहा
ज़्यादा फ़र्क़ नहीं झुकने टूट जाने में 

To bent tree, wind storms hissed to say
Bend or break is not such a different state. 

POET... JAVED AKHTAR. GHAZAL 
Transcreated by Ravi Maun.