पल्लवी...माखनचोर हमारा कान्हा
कृष्ण हमारे माखनचोर
अनुपल्लवी...
अपने घर पर माखन चोरी करते गिरे कन्हाई।
घुटना फूला मटकी फूटी ध्वनि चहुँ दिस गहराई।
माँ डाँटेगी यही सोच कर तुरत कन्हैया डर गया।
यही सोच कर कान्हा की आँखों में पानी भर गया।
चरण.....
माता सुन कर दौड़ी आई आँखों में था रोष।
क्षण भर में काली सा घूरा समझा सुत का दोष।
चतुर चोर था किन्तु उसे मैया को दिखलाना था।
चारों ओर लगा था माखन माँ को मुस्काना था।
बचे दण्ड से, छोड़ श्वास तब नीले माखनचोर।
हँसे, पूर्ण चन्दा सी कान्ति फैल गई चहुँ ओर।
कृष्ण करें आकर्षण सहज बाल सा इनका हास।
आशा है वे भी हँसें जिन्हें न प्रिय परिहास।
कविता भाषा... कन्नड़
कवि... के. एस. निसार अहमद
हिन्दी पद्यानुवाद.. रवि मौन
अति सुंदर, अति उत्तम भाव
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