नाहं देहो न मे देहो बोधोऽहमिति निश्चयी ।
कैवल्यं इव सम्प्राप्तो न स्मरत्यकृतं कृतम्।। ६।।
अष्टावक्र महागीता एकादश प्रकरणः ज्ञानाष्टक
श्लोक संख्या ६
हिन्दी पद्यानुवाद. रवि मौन
न तो मैं शरीर हूँ न ये शरीर मेरा है।
मैं विशुद्ध बोध हूँ यही निश्चय मेरा है।
देह होते हुए भी विदेह यह सत्पुरुष का नूर।
कृत अकृत को भुला कर आकांक्षा से दूर।। ६।।