Tuesday 13 July 2021

KRISHNA BIHARI NOOR....8. COUPLETS

काश ऐसा तालमेल सुकूत- ओ- सदा में हो।
उस को पुकारूँ मैं तो उसी को सुनाई दे। 

Let silence 'n sound have such rhythm pal !
That only he listens, when him I call !

  मैं एक क़तरा हूँ मेरा अलग वुजूद तो है।
हुआ करे जो समंदर मिरी तलाश में है। 

I am a drop with an entity. of my own.
Let the  ocean be in my  search to own.

मेरे हाथों की लकीरों के इज़ाफ़े हैं गवाह। 
मैंने पत्थर की तरह ख़ुद को तराशा है बहुत। 

Witness are creases of my hand that state. 
I 've polished myself like a stone O mate.

मेरे बारे में कोई कुछ भी कहे सब मंज़ूर। 
मुझ को रहती ही नहीं अपनी ख़बर शाम के बाद।

I accept whatever someone tells about me. 
When evening sets in, I know nothing about me. 

यही मिलने का समय भी है बिछड़ने का भी।
मुझको लगता है बहुत अपने से डर शाम के बाद।

It is the time to meet and the time to part.
After eve' but for fear, I know nothing about me.

मैं तो ग़ज़ल सुना के अकेला खड़ा रहा। 
सब अपने अपने चाहने वालों में खो गए। 

I recited the ghazal and stood aside, alone. 
Fancy for loved one in each had grown. 

गुज़रे जिधर जिधर से वो पलटे हुए नक़ाब। 
इक नूर की लकीर सी खिंचती चली गई। 

Route that she took with an upturned veil. 
A streak of light was drawn in it's trail. 

ग़म मेरे साथ साथ बहुत दूर तक गए। 
मुझ में थकन न पाई तो बेचारे थक गए। 

Sorrows had joined me on the route for long. 
As I wasn't exhausted, they rested for long. 


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