Poet of Hindi, Urdu, English, Bengali and Punjabi. I also translate gems of Urdu poetry. Orthopedic surgeon.
Monday 2 September 2024
JAVED AKHTAR.. GHAZAL.. MISAAL ISKI KAHAAN HAI KOI ZAMAANE MEIN....
Tuesday 13 August 2024
PARVEEN SHAAKIR.. CHOSEN COUPLETS
Sunday 11 August 2024
SHAKEB JALAALI... COUPLETS
Saturday 6 July 2024
अष्टावक्र महागीता एकादश प्रकरणः श्लोक संख्या ६
Wednesday 3 July 2024
अष्टावक्र महागीता. एकादश प्रकरणः श्लोक संख्या ।। ३।।
Saturday 29 June 2024
अष्टावक्र महागीता एकादश प्रकरणः ज्ञानाष्टक
Wednesday 26 June 2024
काला नीला है आस्माँ ऊपर
Saturday 22 June 2024
अष्टावक्र महागीता दशम् प्रकरणः श्लोक संख्या द्वितीय
Wednesday 19 June 2024
मुक्त षष्टपदी..... एक खिड़की से दिख रहा है सब......
Saturday 15 June 2024
अष्टावक्र महागीता नवम् प्रकरणः शलोक संख्या छः
Friday 14 June 2024
AHMAD FARAZ.. GHAZAL. AANKH SE DUUR NA JAA DIL SE UTAR JAAYEGA
Thursday 13 June 2024
अष्टावक्र महागीता नवम् प्रकरणः चतुर्थ श्लोक संख्या
अष्टावक्र महागीता नवम् प्रकरणः तृतीय श्लोक
Sunday 9 June 2024
JIGAR MURADABADI.. GHAZAL.. TABIIAT IN DINON BEGAANA-E--GHAM HOTII JAATI HAI
Saturday 8 June 2024
Friday 7 June 2024
MIR TAQI MIR.. GHAZAL... HASTI APNII HABAAB KI SI HAI.....
SAHIR LUDHIYANVI.. GHAZAL.. HAR TARAH KE JAZBAAT KA ELAAN HEIN AANKHEN
Thursday 6 June 2024
वंशीविभूषितकरान्नवनीरदाभात् पीताम्बरादरुणबिम्बफलाधरोष्ठात्।
Wednesday 5 June 2024
BASHIR BADR..GHAZAL.. VOH PYASE JHONKE BAHUT PYAASE LAUT JAATE HEIN...
Tuesday 4 June 2024
एक कविता
Monday 3 June 2024
BRIJ NARAYAN CHAKBAST. GHAZAL... KUCHH AISAA PAAS-E-GHAIRAT UTH GAYA IS AHAD-E-PUR-FAN MEN.....
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम्.......
Saturday 1 June 2024
GHALIB.. GHAZAL.. DIL-E-NAADAAN TUJHE HUA KYA HAI.....
MOMIN .. GHAZAL.. VOH JO HUM MEN TUM MEN QARAAR THA TUMHEN YAAD HO KI NA YAAD HO...
AMEER MINAAI.. HAMS.. DOOSRAA KAUN HAI JAHAAN TOO HAI...
Wednesday 29 May 2024
AMEER MINAAI. GHAZAL. JAB SE BULBUL TOONE DO TINKE LIYE...
AMIR MINAAI.. GHAZAL.. US KII HASRAT HAI JISE DIL SE MITA BHI N SAKOON
Tuesday 28 May 2024
IBN-E-ALI-INSHAA.. GHAZAL.. INSHAAJI UTHO AB KOOCH KARO IS SHAHAR MEN JII KO LAGAANAA KYA
Sunday 26 May 2024
अष्टावक्र महागीता का एक श्लोक
Saturday 25 May 2024
BASHIR BADR.. GHAZAL.. US KII CHAAHAT KI CHAANDNI HOGI.....
Friday 24 May 2024
DAAGH DEHLAVI.. GHAZAL.. GHAZAB KIYA TERE VAADE PE ETIBAAR KIYA...
Thursday 23 May 2024
AAMI JENE SHUNE BISH KORECHHI PAAN .... TAGORE'S SONG
Wednesday 22 May 2024
SALEEM KAUSAR.. GHAZAL.. QURBATON HOTE HUYE BHI FAASLON MEN QAID HAIN...
Tuesday 21 May 2024
JIGAR MURADABADI KI GAZAL DIL MEIN KISI KE RAAH KIYE JA RAHA HOON MAIN
Monday 20 May 2024
KAIFI AAZMI.. GHAZAL.. TUM ITNAA JO MUSKURAA RAHE HO.. .....
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता
Saturday 18 May 2024
GULZAR.. GHAZAL.. HANS KE BOLA KARO BULAYA KARO...
SACHIN LIMAYE.. GHAZAL. NA SUBOOT HAI NA DALEEL HAI
शिव स्तुति
Thursday 16 May 2024
ये कूचे ये नीलामघर दिलकशी के
ये महलों ये तख़्तों ये ताजों की दुनिया
Wednesday 15 May 2024
ताज महल. साहिर लुधियानवी
Monday 13 May 2024
मैं अपने शहर में इक अजनबी हूँ
Friday 19 April 2024
श्री राघवयादवीयम्
महाकवि श्री वेङ्कटाध्वरि कृत संस्कृत काव्य
श्री राघवयादवीयम्
हिन्दी अनुवादक : डॉ. रवि 'मौन'
(सरोजा रामानुजम् के अंग्रेज़ी रूपांतरण पर आधारित)
महाकवि श्री वेङ्कटाध्वरि कृत
श्री राघवयादवीयम्
अनुवादक: डॉ. रवि ‘मौन’
ॐ श्री हरि नमः
प्रथम पूज्य हे गणपति, गौरी पुत्र गणेश ।
हरि हर विधि रक्षा करें, रखिए कृपा विशेष ।।
कैसे इनकी करूँ वन्दना ?
ये हैं सुखमय रामचन्द ना !
सुंदर इतने कृष्ण मुरारी !
मैं इन पर जाऊँ बलिहारी ।
-डॉ. रवि 'मौन'
स्याम रूप किमि कहहुँ बखानी ।
गिरा अनयन, नयन बिनु बानी ।।
-रामचरित मानस
तुलसीदास
जयत्याश्रितसंत्रास-ध्वान्त- विध्वंसनोदयः ।
प्रभावान्सीतया देव्या परमव्योमभास्करः ॥
वन्दे बृन्दावनचरम् वल्लवीजन-वल्लभम् ।
जयन्ती-सम्भवम् धाम वैजयन्ती-विभूषणम् ।।
-श्री वेदान्त देशिक
कवि - काव्य परिचय :
राघवयादवीयम् एक संस्कृत काव्य है। यह कांचीपुरम वासी १७वीं शताब्दी के कवि वेङ्कटाध्वरि द्वारा रचित एक अद्भुत ग्रन्थ है।
इस ग्रन्थ को 'द्विसन्धान काव्य' भी कहा जाता है। पूरे ग्रन्थ में केवल ३० श्लोक हैं। इन श्लोकों को अनुलोम क्रम से (सीधे-सीधे) पढ़ते जाएँ तो संक्षिप्त रामकथा बनती है और प्रतिलोम क्रम से (उल्टा) पढ़ने पर कृष्ण द्वारा पारिजात हरण की कथा बनती है। पुस्तक के नाम से भी यह ज्ञात होता है, राघव (राम) एवं यादव (कृष्ण) के चरित को बताने वाली गाथा है राघवयादवीयम्।
इस अद्भुत कृति का हिन्दी छंद काव्यरूपी अनुवाद इस पुस्तक में प्रस्तुत है।
प्रस्तावना :
मैं, रवीन्द्र कुमार चौधरी, मूलतः चिकित्सक हूँ। मेरा जन्म सन् १९४७ में हरियाणा के नांगल चौधरी गाँव में हुआ। बाल्यावस्था से ही साहित्य के प्रति मेरा रुझान था। पिताजी के कहने पर आजीविका हेतु मैं चिकित्सक बना, पर कविताओं में मेरी रुचि बनी रही। रवि ‘मौन’ के नाम से मेरी रचनाएँ और अनुवाद हिन्दी, उर्दू, अंग्रेज़ी, बंगाली और पंजाबी भाषाओं में मेरे ब्लॉग www.ravimaun.com पर उपलब्ध हैं। अब मैं अपना अधिकतर समय अपनी रचनात्मक कृतियों में व्यतीत करता हूँ।
इस क्रम में इस अद्भुत कृति की जानकारी मुझे बेंगलूरु के कन्नड़ शिक्षक श्री प्रदीप श्रीनिवासन खाद्री से मिली जिनका मैं हृदय से आभार प्रकट करता हूँ।
यह अनुवाद डॉ. सरोजा रामानुजम् द्वारा किये गये अंग्रेज़ी अनुवाद पर आधारित है। अतः उन्होंने जो अनुवाद किया उसे ही मैंने हिन्दी काव्य का रूप दिया है। उनका भी मैं अत्यंत आभारी हूँ।
प्रिय को सप्रेम भेंट
वन्देऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।
रामः रामाधीः आप्यागः लीलाम् आर अयोध्ये वासे ।।
प्रथमः श्लोकः ~ अनुलोम हिंदी पद्यानुवाद
ढूँढें सह्य मलय गिरि वन में ।
ध्यान किये सीता का मन में ।
रावण वध कर आँय अयोध्या ।
रमण करें सिय संग महलन में ।
मैं पूजूँ श्री रामचन्द्र को।
तन मन कर अर्पित वन्दन में ।
सेवाध्येयोरामालाली गोप्याराधी मारामोराः ।
यस्साभालङ्कारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ।।
प्रथमः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी पद्यानुवाद
मैं हूँ रुक्मिणि कृष्ण शरण में ।
जो आराध्य गोपियन मन में ।
लक्ष्मी क्रीड़ास्थल उर जिन का ।
झंकृत आभूषण आँगन में ।
मैं तो उन की करूँ वन्दना ।
जो श्री कृष्ण बसे हैं मन में ।।
साकेताख्या ज्यायामासीत् या विप्रादीप्ता आर्याधारा ।
पूः आजीता अदेवाद्याविश्वासा अग्र्यासावाशारावा ।।
द्वितीयः श्लोकः ~ अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
पुरी अयोध्या भू प्रांगण में ।
ब्राह्मण विदु थे सब ग्रंथन में ।
वैश्य रखें धनवान नगर को ।
यह आधार पुरी का धन में ।
अजसुत दशरथ राजा उस के ।
शामिल देव होंय यज्ञन में ।।
वाराशावासाग्र्या साश्वाविद्यावादेताजीरापूः ।
राधार्याप्ता दीप्रा विद्यासीमा या ज्याख्याता के सा ।।
द्वितीयः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी पद्यानुवाद
द्वारिका थी समुद्र मध्यन में ।
मोक्षप्राप्ति हो यहाँ निधन में ।
ज्ञान और बल की यह सीमा ।
सेना पूरी गज अश्वन में ।
राधा के आराध्य कृष्ण थे ।
इस नगरी के संचालन में ।।
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कामभास्थलसारश्रीसौधा असौ धनवापिका ।
सारसारवपीना सरागाकारसुभूरिभूः ।।
तृतीयः श्लोकः ~ अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
जो भी इच्छा हो जीवन में ।
पूरण होय अवध महलन में ।
गहरे कुँए यहाँ बहुतेरे ।
सारस की ध्वनि भरी गगन में ।
सुन्दर बहुत महल नगरी के ।
रक्तिम रज आए चरणन में ।।
भूरिभूसुरकागारासना पीवरसारसा ।
का अपि वा अनघसौधा असौ श्रीरसालस्थभामका ।।
तृतीयः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी पद्यानुवाद
हैं चबूतरे सब भवनन में ।
ब्राह्मण मगन हवन पूजन में ।
ये त्रुटिहीन नगर के घर सब ।
सूरज दिखे आम्र पत्रन में ।
बड़े बड़े बहु कमल खिले हैं ।
बसी द्वारिका ऐसी मन में ।।
रामधाम समानेनम् आगोरोधनम् आस ताम् ।
नामहाम् अक्षररसम् ताराभाः तु न वेद या ।।
चतुर्थः श्लोकः ~ श्लोक अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
जगमग अवध राम कांतिन में ।
ऊँचे भवन और वृक्षन में ।
दिखें न सूर्य, चन्द्र,औ' तारे ।
ऐसी प्रभा रामचन्द्रन में ।
नष्ट पाप हों, पर्व मनें हैं ।
अवध असीमित रहे सुखन में ।।
यादवेनः तु भाराता संररक्ष महामना: ।
तां सःमानधरः गोमान् अनेमासमधामराः ।।
चतुर्थः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी पद्यानुवाद
कृष्ण सूर्य यादव वंशन में ।
उत्तम नर, गौ के रक्षण में ।
यहाँ असीमित सुख समृद्धि ।
आती नहीं कहीं वर्णन में ।
शील स्वभाव द्वारिका पालक ।
दाता, संरक्षक हर क्षण में ।।
यन् गाधेयः योगी रागी वैताने सौम्ये सौख्ये असौ ।
तं ख्यातं शीतं स्फीतं भीमान् आम अश्रीहातात्रातम् ।।
पंचमः श्लोकः ~ अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
विश्वामित्र तप करें वन में ।
राम करें रक्षा यज्ञन में ।
शील, शान्त औ' ख्याति विभूषित ।
अब सम्भव न होय विघ्नन में ।
योगी, साधु, सौम्य मुनि ज्ञानी ।
लीन शान्ति से यज्ञ, हवन में ।।
तं त्राता हा श्रीमान् आम अभीतं स्फीतं शीतं ख्यातं ।
सौख्ये सौम्ये, असौ नेता वै गीरागी यःयोधे गायन् ।।
पंचमः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी पद्यानुवाद
नारद ऋषि प्रसिद्ध गायन में ।
साहस दें योद्धा के मन में ।
गुण सम्पन्न सभी विधि ज्ञानी ।
कहलाते नेता ब्राह्मण में ।
कृष्ण शील औ' शान्त दयामय ।
है विख्यात कृपा जन गण में ।।
मारमं सुकुमाराभं रसाजा आप नृताश्रितं ।
काविरामदलापा गोसमा अवामतरा नते ।।
षष्ठः श्लोकः ~ अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
सीता उपजी भूखण्डन में ।
आनन्द दें अविराम कथन में ।
भूमि समान शक्ति सहने की ।
सीधी सत्य स्वभाव गुणन में ।
सीता लक्ष्मिस्वरूपा ही थीं ।
राम विष्णु के अवतारन में ।।
तेन रातम् अवामा आस गोपालात् अमराविका ।
तम् श्रितनृपजा सारभम् रामा कुसुमम् रमा ।।
षष्ठः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी पद्यानुवाद
रुक्मिणि लक्ष्मी अवतारन में ।
पति को पाँय कृष्ण रूपन में ।
राजसुता थी स्वयं रुक्मिणी ।
देव रहें जिन के रक्षण में ।
नारद दें श्री कृष्णचंद्र को ।
पारिजात सुरभित पुष्पन में ।।
रामनामा सदा खेदभावे दयावान् अतापीनतेजा रिपौ आनते ।
कादिमोदासहाता स्वभासा रसामे सुगः रेणुकागात्रजे भूरुमे ।।
सप्तमः श्लोकः ~ अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
दया राम के छाई मन में ।
सूर्य समान दमकते वन में ।
सुगम, कष्ट पाते सन्तन को ।
नष्ट करें सब राक्षस क्षण में ।
परशुराम जिन पृथ्वी जीती ।
शान्त हुए हरि, ऋषि दर्शन में ।।
मेरुभूजेत्रगा काणुरे गोसुमे सारसा भास्वता हा सदा मोदिका ।
तेनवा पारिजातेनपीतानवा यादवे अभात् अखेदा समानामरा ।।
सप्तमः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी पद्यानुवाद
गन्ध न कुछ धरती कुसुमन में ।
पारिजात उत्तम पुष्पन में ।
नारद लाए, दिया कृष्ण को ।
गंध बस गई रुक्मिणि मन में ।
पुष्प कान्ति से दिव्य देह पा।
खेद न कुछ, मन है कृष्णन में ।
सारसासमधात अक्षिभूम्ना धामसु सीतया ।
साधु असौ इह रेमे क्षेमे अरम् आसुरसारहा ।।
अष्टमः श्लोकः ~ अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
राक्षस नष्ट करें वे क्षण में।
स्थिर भाव है इन नैनन में ।
कमल समान राम की आँखें ।
किन्तु न हों ये विचलित रण में ।
जीवन इतना सहज अवध में ।
राम सहित सीता महलन में ।।
हारसारसुमा रम्यक्षेमेरा इह विसाध्वसा ।
या अतसीसुमधाम्ना भूक्षिता धाम ससार सा ।।
अष्टमः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी पद्यानुवाद
रुक्मिणि घर समृद्धि सुखन में ।
पारिजात हार कंठन में ।
लौट रहीं निज धाम रुक्मिणि ।
रही न कोई इच्छा मन में ।
कृष्ण सजे अतसी फूलों से ।
वे भयहीन कृष्ण रक्षण में ।।
सागसा भरताय इभमाभाता मन्युमत्तया ।
सा अत्र मध्यमया तापे पोताय अधिगता रसा ।।
नवमः श्लोकः ~ अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
कैकेई रानी मध्यम में ।
अग्नि क्रोध की जलती मन में ।
राजा बनने का अधिकारी ।
नहीं भरत सम अवधपुरन में ।
राम का नहीं, राज्य भरत का ।
सम्भव होय अवध प्रांगण में ।।
सारतागधिया तापोपेता या मध्यमत्रसा ।
यात्तमन्युमता भामा भयेता रभसागसा ।।
नवमः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी पद्यानुवाद
दुःखी सत्यभामा थी मन में ।
वह सुमध्यमा थी महलन में ।
पारिजात तो मुझको देते ।
क्रोध भरा साजन पर मन में ।
भग्न हृदय हो, बन्द द्वार कर ।
जा कर बैठ गई अनशन में ।।
तानवात अपका उमाभा रामे काननदा आस सा ।
या लता अवृद्धसेवाका कैकेयी महदा अहह ।।
दशमः श्लोकः ~ अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
सूखी बेल समान भवन में ।
तज सुख पीत भई महलन में ।
छोड़ी सेवा वृद्ध सजन की ।
अभिषेकन के ही खण्डन में ।
अहा राम अब वन को जाएँ ।
चाह प्रबल कैकेयी मन में ।।
हह दाहमयी केकैकावासेद्धवृतालया ।
सा सदाननका आमेरा भामा कोपदवानता ।।
दशमः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी पद्यानुवाद
मुख पर कान्ति, जलन है मन में।
जैसे आग लगी हो वन में ।
विचलित पति के पक्षपात से ।
दुःखी सत्यभामा महलन में ।
मोरों का आवास जहाँ था ।
जा बैठी, हो बन्द भवन में ।।
वरमानद सत्यासह्रीत पित्रादरात् अहो ।
भास्वर: स्थिरधीरः अपहारोराः वनगामी असौ ।।
एकादशः श्लोकः ~ अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
राम धीर स्थिर हैं महलन में ।
पितु शर्मिन्दा प्रण बन्धन में ।
कर वन गमन मान रखते हैं ।
आदर बहुत पिता का मन में ।
गहनों बिन भी आभा इतनी ।
विद्युत रेखा जाती वन में ।।
सौम्यगानवरारोहापरः धीरः स्थिरस्वभा: ।
हो दरात् अत्र आपितह्री सत्यासदनम् आर वा ।।
एकादशः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी पद्यानुवाद
सतभामा रुचि संगीतन में ।
कृष्ण प्रेम करते हैं मन में ।
धीर, स्थिर गुण हैं माधव के ।
फिर भी भय सा उन के मन में ।
आती प्रीति, शर्म दोनों ही ।
हरि जाते उन के महलन में ।।
या नयानघधीतादा रसायाः तनया दवे ।
सा गता हि वियाता ह्रीसतापा न किल ऊनाभा ।।
द्वादशः श्लोकः ~ अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
सीता प्रकटी भूखंडन में।
पावन करतीं शास्त्र पठन में।
लज्जित हैं, क्या किया मात ने।
भाव नहीं झलके आनन में।
आभा थी पहले सी मुख पर।
पति के साथ चल पड़ी वन में।।
भान् अलोकि न पाता सः ह्रीताया विहितागसा ।
वेदयानः तया सारदात धीघनया अनया ।।
द्वादशः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी पद्यानुवाद
भामा अग्रणी थी बुधिजन में।
पारिजात सुन्दर पुष्पन में ।
दिया कृष्ण ने उसे सौत को ।
क्षोभ बहुत था उस के मन में ।
देखा नहीं उन्हें जी भर के ।
गरुड़ रहें जिन के वाहन में ।।
रागिराधुतिगर्वादारदाहः महसा हह ।
यान् अगात् भरद्वाजम् आयासी दमगाहिनः ।।
त्रयोदशः श्लोकः ~ अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
मग्न राम असुरहिं हनन में।
रक्षा कर मुनिजन की वन में ।
भेंट करें मुनि भरद्वाज से ।
ये सम्मानित सब मुनिगण में ।
राक्षस क्रूर बहुत बलशाली ।
इनको रघुवर जीतें रण में ।।
नो हि गाम् अदसीयामाजत् वा आरभत गाः न या ।
हह सा आह महोदार दार्वागतिधुरा गिरा ।।
त्रयोदशः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी पद्यानुवाद
सतभामा चुप थी महलन में ।
ध्यान न देती कृष्ण कथन में ।
वृक्ष उखाड़ स्वर्ग से लाऊँ ।
आरोपित हो इस कानन में ।
हुई अचम्भित जब हरि बोले ।
पारिजात लाऊँ महलन में ।।
यातुराजिदभाभारम् द्याम् व मारुतगंधगम् ।
सः अगम् आर पदम् यक्षतुङ्गाभः अनघयात्रया ।।
चतुर्दशः श्लोकः ~ अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
ऋषि अगस्त्य उत्तम मुनिगण में ।
है प्रभाव उन का इस वन में ।
राक्षस रहते दूर यहाँ से ।
आभा ऐसी है कानन में ।
चित्रकूट की छटा निराली ।
है त्रुटि रहित गति रामन में ।।
यात्रया घनभः गातुम् क्षयदम् परमागसः ।
गन्धगम् तरुम् आव द्याम् रम्भाभादजिरा तु या ।।
चतुर्दशः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी पद्यानुवाद
बादल सी आभा कृष्णन में ।
क्षोभ न हो सतभामा मन में।
रंभा सी अप्सरा चतुर्दिश ।
घूमें इसी स्वर्ग कानन में ।
पारिजात की गन्ध निराली ।
फैल रही है इस उपवन में ।।
दण्डकाम् प्रदमः राजाल्याहतामयकारिहा ।
सः समानवतानेनोभोग्याभः न तदा आस न ।।
पंचदशः श्लोकः ~ अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
जीता परशुराम को क्षण में ।
राम आ गए दण्डकवन में ।
उनके वश जो पापरहित हैं ।
मानवता के आभूषण में ।
जानें जिन्हें दिव्य आत्मा ही ।
राम फिरें मानव के तन में ।।
न सदातनभोग्याभः नो नेता वनम् आस सः ।
हारिकायमताहल्याजारामोदप्रकाण्डजम् ।।
पंचदशः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी पद्यानुवाद
परमानन्दित सारे मन में ।
कृष्ण आ गए नन्दनवन में ।
हरि की सी कर सुन्दर काया ।
इन्द्र अहिल्या करी वशन में ।
कृष्ण सदा सब के ही स्वामी।
आए देवराज कानन में ।।
सः अरम् आरत् अनज्ञानः वेदेराकण्ठकुम्भजम् ।
तम्द्रुसारपटः अनागाः नानादोषविराधहा ।।
षोडशः श्लोकः ~ अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
मुनि अगस्त्य रहते इस वन में ।
वाणि प्रतिध्वनित है वेदन में ।
वध विराध का किया राम ने ।
आनंदित सब दण्डकवन में।
तपसी सी पहनें द्रुमछाला ।
दोष न कुछ भी था रामन में ।।
हा धराविषदः नानागानाटोपरसात् द्रुतम् ।
जंभकुण्ठकराः देवेनः अज्ञानदरम् आर सः ।।
षोडशः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
इन्द्रदेव अधिपति देवन में ।
धरा वृष्टि इन के हाथन में ।
जम्भासुर वध किया इन्द्र ने ।
मन रमता है संगीतन में ।
जाना कृष्ण यहाँ आए हैं।
छाया है भय इन के मन में ।।
सागमाकरपाता हाकङ्केनावनतः हि सः ।
न समानर्द मा अरामा लङ्काराजस्वसारतम् ।।
सप्तदशः श्लोकः ~ अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
रक्षक मुनिजन के हर वन में।
ज्ञानी जो थे सब वेदन में।
विधिवत शीश नवाते रघुवर।
कंक राम के रहे चयन में।
सजी - धजी रावण की बहना ।
चाहे रघुवर गठबंधन में।।
तम् रसासु अजराकालम् मा आरामार्दनम् आरन ।
सः हितः अनवनाके अकम् हाता अपारकम् आगसा ।।
सप्तदशः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी पद्यानुवाद
यूँ तो इन्द्र कृष्ण मित्रन में ।
पारिजात प्रत्यारोपण में ।
कृष्ण अजर अवतरित धरा पर ।
फिर भी क्रोधित उन पर मन में ।
यूँ न लुटे सम्पदा स्वर्ग की ।
शस्त्र उठा कर उतरे रण में ।।
तां स: गोरमदोश्रीदः विग्राम् असदरः अतत ।
वैरम् आस पलाहारा विनासा रविवंशके ।।
अष्टादशः श्लोकः ~ अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
शूर्पणखा क्रोधित थी मन में ।
कटी नाक उसकी जब वन में ।
लक्ष्मण दाँयी भुजा राम की ।
भय कैसे हो उनके मन में ?
मांसाहारी थी वह नारी ।
वैर बढ़ा रघुकुल रावण में ।
केशवम् विरसानाविः आह आलापसमारवैः ।
ततो रोदसम् अग्राविदः अश्रीदः अमरगः असताम् ।।
अष्टादशः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी पद्यानुवाद
प्रमुदित थे पर्वत पङ्खन में ।
आ बैठें जह्ँ तहँ जनगण में ।
काटे पङ्ख वज्र से सारे ।
राजा इन्द्र सभी देवन में ।
क से ब्रह्म इसा से शिव हैं ।
केशव केसी दैत्य दमन में ।
गोद्युगोमः स्वमायः अभूत् अश्रीगखरसेनया ।
सह साहवधारः अविकलः अराजत् अरातिहा ।।
नवदशः श्लोकः ~ अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
उतरी खर की सेना रण में ।
राम अकेले थे क्षेत्रन में ।
सेना ने निज ख्याति गँवाई ।
भागी डर कर चहुँदिस वन में ।
और राम का इसी युद्ध से ।
फैला यश भू और गगन में।
हा अतिरादजरालोक विरोधावहसाहस ।
यानसेरखग श्रीद भूयः मा स्वम् अगः द्युगः ।।
नवदशः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी पद्यानुवाद
इन्द्र कहें यह नन्दनवन में ।
पारिजात शुभ है स्वर्गन में ।
देवों की मत ख्याति मिटाएँ ।
भू पर इस के आरोपण में ।
गरुड़ वेद की ही प्रतिश्रुति हैं ।
जो कि आप के हैं वाहन में ।।
हतपापचये हेयः लङ्केशः अयम् असारधीः ।
राजिराविरतेरापः हाहा अहम्ग्रहम् आर घः ।।
विंशतितमः श्लोकः ~ अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
राम ने मारा खर को रण में ।
रावण ने यह सोचा मन में ।
राक्षस मेरे संग बहुतेरे ।
क्रूर, मस्त मय पी जीवन में ।
धावा करें, घेर लें उस को ।
जिस ने मारे राक्षस वन में ।।
घोरम् आह ग्रहम् हाहापः अरातेः रविराजिराः ।
धीरसामयशोके अलम् यः हेये च पपात ह ।।
विंशतितमः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी पद्यानुवाद
नृप गन्धर्व और देवन में
दमक रहे स्वर्णाभूषण में ।
दुःख समाया हुआ हृदय में ।
इससे भूल हुई समझन में ।
क्यों यह देवराज ने सोचा ?
लेंगे माधव को बन्धन में ।।
ताटकेयलवात् एनोहारीहारिगिरा आस सः ।
हा असहायजना सीता अनाप्तेन अदमनाः भुवि ।।
एकविंशतितमः श्लोकः ~ अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
पाप नष्ट होते त्रिभुवन में ।
राम नाम जब लेते मन में ।
चिल्लाया मारीच रामस्वर ।
लक्ष्मण रक्षा करना वन में ।
सीता आर्तनाद यह सुन कर ।
विचलित राम बिना निर्जन में ।।
विभुना मदनाप्तेन आत आसीनाजयहासहा ।
सः सराः गिरिहारी हानोदेवालयके अटता ।।
एकविंशतितमः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी पद्यानुवाद
बहु समृद्ध इन्द्र हैं धन में ।
पङ्खहीन गिरि सब निर्जन में ।
ठनी इन्द्रसुत कृष्णतनय में ।
उतरे इन्द्र पुत्र पक्षन में ।
ले प्रद्युम्न को संग कृष्ण भी ।
विचरें सभी ओर स्वर्गन में ।।
भारमा कुदशाकेन आशराधीकुहकेन हा ।
चारुधीवनपालोक्या वैदेही महिता हृता ।।
द्वाविंशतितमः श्लोकः ~ अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
सीता लक्ष्मी सभी गुणन में ।
पूजित हैं हर विधि जन गण में ।
रावण नीच विधा पर उतरा ।
हुआ सफल छल सिया हरण में ।
उठा लिया बैठाया रथ पर ।
देव चुप रहे फिर भी वन में ।।
ता: हृताः हि महीदेवैक्यालोपानवधीरुचा ।
हानकेहकुधीराशा नाकेशादकुमारभाः ।।
द्वाविंशतितमः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी पद्यानुवाद
हुए अशान्त प्रद्युम्ना मन में ।
देख इन्द्र का निश्चय रण में ।
भगते देव लौट कर आए ।
देखे इन्द्र देव रक्षण में ।
देव सभी नकली योद्धा हैं ।
पीठ दिखाएँ रण प्राङ्गण में ।।
हारि तोयदभः रामावियोगे अनघवायुजः ।
तम् रुमामहितः अपेतामोद: असारज्ञः आम यः ।।
त्रयोविंशतितमः श्लोकः ~ अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
सुन्दर राम कान्ति मेघन में ।
हनुमत साथ सीय बिन वन में ।
रुमा छिनी सुग्रीव दुःखी हैं ।
भूले बुद्धि और बल क्षणन में।
वालि ने सताया है इतना ।
राम बचाएँ इन को रण में ।।
यः अमराज्ञः असादोमः अतापेतः हिममारुतम् ।
जः युवाघनगेयः विम आर आभोदयतः अरिहा ।।
त्रयोविंशतितमः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी पद्यानुवाद
मूर्छित हुए कृष्ण सुत रण में।
देव बढ़े लेने बन्धन में ।
थपकी लागी शीत पवन की।
तत्क्षण वे आए चेतन में।
पुनः प्रहार किया देवों पर।
और हराया उन को रण में ।।
भानुभानुतभाः वामासदामोदपरः हतम् ।
तम् ह तामरसाभाक्षः अतिराता अकृतवासविम् ।।
चतुर्विंशतितमः श्लोकः ~ अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
आभा इतनी थी रामन में ।
फीकी लगे प्रभा सूर्यन में ।
कमल समान राम की आँखें ।
दें आनन्द सिया के मन में ।
वाली इन्द्रपुत्र बलशाली ।
मार गिराया उस को रण में ।।
विम् सः वातकृताराति क्षोभासारमताहतम् ।
तम् हरोपदमः दासम् आव आभातनु भानुभाः ।।
चतुर्विंशतितमः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी पद्यानुवाद
शिव न कृष्ण से जीते रण में ।
आभा इतनी कब सूर्यन में !
फड़काए जब पंख गरुड़ ने ।
हो गई क्षीण शक्ति देवन में।
निज वाहन पर वार हुए तो ।
कृष्ण कहाँ चुप रहते रण में ?
हंसजारुद्धबलजा परोदारसुभा अजनि ।
राजि रावणरक्षोर विघाताय रमा आर यम् ।।
पञ्चविंशतितमः श्लोकः ~ अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
राम सुग्रीव मैत्रि बन्धन में ।
रक्षा इक दूजे की रण में ।
है राजा और सेना सारी।
राम हेतु जीवन अर्पण में।
रावण वध कर यश पाएँगे ।
वानर रामचन्द्र संगन में ।।
यम् रमा आर यताघाविरक्षोरणवराजिरा ।
निजभा सुरदारोपजाल बद्धरुजासहम् ।।
पञ्चविंशतितमः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी पद्यानुवाद
बाण वृष्टि सह कर भी रण में ।
कृष्णाभा क्षयकर असुरन में ।
जयलक्ष्मी का वरण कर रहे ।
कर परास्त अरिगण को रण में ।
कांति मनोहर मधुसूदन की।
मिटती नहीं किसी अनबन में।
सागरातिगम् आभातिनाकेशः असुरमासहः ।
तम् सः मारुतजम् गोप्ता अभात् आसाद्यगतः अगजम् ।।
षड्विंशतितमः श्लोकः ~ अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
इन्द्राधिक कीर्ति रामन में ।
सह नहीं सके प्रगति असुरन में ।
रक्षा में हनुमान साथ हैं ।
सागरतट सहाद्रि शेषन में ।
ख्याति अपार मिली हनुमत को ।
सागर पार गए लङ्कन में ।।
जम् गतः गदी असादाभाप्ता गोजंतरुम् आसतम् ।
हः समारसुशोकेन अतिभामागत: आगस ।।
षड्विंशतितमः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी पद्यानुवाद
कृष्ण क्रोध प्रद्युम्न दुःखन में ।
क्षति पहुँची है जिस को रण में ।
पारिजात अरु गदा हाथ हैं ।
तरु जो उपजा है स्वर्गन् में।
कीर्ति अशेष सदा ही उन की ।
विजयी कृष्ण रहेंगे रण में ।।
वीरवानरसेनस्य त्राता अभात् अवता हि सः ।
तोयधौ अरिगोयादसि अयतः नवसेतुना ।।
सप्तविंशतितमः श्लोकः ~ अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
गहरा पानी है जलधिन में।
है बल बहुत वारि-जीवन में।
त्राता राम वानरों के हैं ।
तैरें पत्थर हरि सङ्गन में ।
पुल बनने पर वानर सेना।
पार करे, पहुँचे लङ्कन में।।
ना तु सेवनतः यस्य दयागः अरिवधायतः ।
स: हि तावत् अभाता त्रासी अनसेः अनवारवी ।।
सप्तविंशतितमः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी पद्यानुवाद
जो हैं हरि की कीर्ति श्रवण में ।
जीतें वे अरिदल से रण में ।
करते मधुस्वर से हरि गायन ।
कभी न हारें संसारन में ।
खोते कान्ति, शान्ति उन के बिन ।
डरते अरि से बिन शस्त्रन में ।।
हारिसाहसलङ्केनासुभेदी महितः हि सः ।
चारुभूतनुजः रामः अरम् आराधयदार्ति हा ।।
अष्टाविंशतितमः श्लोकः ~ अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
अद्भुत शक्ति राम बाणन में ।
किया पराजित रावण रण में ।
सीता सुन्दर भूमिसुता थी ।
रामचन्द्र सङ्गिनि जीवन में ।
राम सदा ही रक्षक उनके।
जो आएं उनके चरणन में।।
हा आर्तिदाय धराम् आर मोराः जः नुतभूः रुचा ।
सः हितः हि मदीभेसुनाके अलम् सहसा अरिहा ।।
अष्टाविंशतितमः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी पद्यानुवाद
थे प्रद्युम्न कृष्ण रक्षण में ।
मारा अरिगण को स्वर्गन में ।
नहीं कर सका कुछ ऐरावत ।
था मदमस्त स्वर्ग प्राङ्गण में ।
जिनके उर पर लक्ष्मि विराजे ।
कौन हराए उन को रण में ?
नालिकेर सुभाकारागारा असौ सुरसापिका ।
रावणारिक्षमेरा पूः आभेजे हिन न अमुना ।।
नवविंशतितमः श्लोकः ~ अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
प्रजा प्रसन्न आज अवधन में।
राक्षस रावण संहारन में ।
वृक्ष नारियल के घेरे हैं ।
इन रंगीं अवधी भवनन में ।
यह नगरी है राम की नगरी ।
करते राज सभी के मन में ।।
न अमुना ने हि जेभेरा पूः आमे अक्षरिणा वरा ।
का अपि सारसुसौरागा राकाभासुर केलिना ।।
नवविंशतितमः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी पद्यानुवाद
नगर द्वारिका उत्सवपन में ।
जीतें हाथी अरि को रण में ।
कृष्ण साहसी धर्म वीर हैं ।
गोपियन साथी बालकपन में ।
पारिजात को आन द्वारिका ।
रोपित किया उसे नगरन में।।
सा अग्र्यतामरसागाराम् अक्षामा घनभा आर गौः ।
निजदे अपरजिति आस श्री: रामे सुगराजभा ।।
त्रिंशत्तमः श्लोकः ~ अनुलोम हिन्दी पद्यानुवाद
कान्ति न अवध आय वर्णन में ।
लक्ष्मी बसतीं इस नगरन में ।
भरी अयोध्या कमल पुष्प से ।
आभा फैली सभी दिशन में ।
दें अपना सर्वस्व राज्य को ।
राम रहे अपराजित रण में ।।
भा अजरागसुमेरा श्रीसत्याजिरपदे अजनि ।
गौरभा अनघमा क्षामरागासा अरमत अग्र्यसा ।।
त्रिंशत्तमः श्लोकः ~ प्रतिलोम हिंदी रूपान्तरण
पारिजात तरु था स्वर्गन में ।
फूले सतभामा प्राङगण में ।
उसकी आभा वैमनस्य को ।
मिटा चुकी सब के ही मन में ।
रुक्मिणि और सत्यभामा अब ।
आन लगीं कृष्णन वक्षन में ।।