चन्द्र बढ़ाए शोभा सर की गंग जटा में साजे।
नीलकण्ठ हैं भोले बाबा गले भुजंग बिराजे।।
चेहरे पर त्रिनेत्र शोभित हैं कर में है तिरशूल।
भस्म लगा कर तन में श्रीहर गए उमा को भूल।।
लगी समाधि सदाशिव की तो गणना काल बिसारी।
राघवेन्द्र का ध्यान लगा कर बैठ गए त्रिपुरारी।।
-रवि मौन
१६-०२-२०१४
नीलकण्ठ हैं भोले बाबा गले भुजंग बिराजे।।
चेहरे पर त्रिनेत्र शोभित हैं कर में है तिरशूल।
भस्म लगा कर तन में श्रीहर गए उमा को भूल।।
लगी समाधि सदाशिव की तो गणना काल बिसारी।
राघवेन्द्र का ध्यान लगा कर बैठ गए त्रिपुरारी।।
-रवि मौन
१६-०२-२०१४
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