Thursday 28 April 2022

BASHIR BADR.. GHAZAL.. SADIYON KI GATHARI SAR PAR LE JAATI HAI...

 सदियों की गठरी सर पर ले जाती है।
दुनिया बच्ची बन कर वापस आती है। 

With bale of centuries on head space. 
As a child world gets back at it's pace. 

मैं दुनिया की हद के बाहर रहता हूँ। 
घर मेरा छोटा है लेकिन ज़ाती है। 

I live outside bonds of world. 
Home is small but I own the place. 

दुनिया भर के शहरों का कल्चर यकसाँ। 
आबादी तन्हाई बनती जाती है। 

World city culture has one trace. 
Populace is solitude in it's face. 

मैं शीशे के घर में पत्थर की मछली। 
दरिया की ख़ुशबू मुझ में क्यों आती है ?

I am a stone fish in glass house. 
Why does fragrance of river grace ?

पत्थर बदला पानी बदला बदला क्या ?
इंसाँ तो जज़्बाती था जज़्बाती है। 

Stone changed, water changed, what has changed ?
Human beings were emotional, have still same trace.

काग़ज़ की कश्ती जुगनू झिलमिल झिलमिल। 
शोहरत क्या है, इक नदिया बरसाती है।

Paper boats, glow-worms, glittering away. 
Fame is a stream at rainy pace. 

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