एक रूप में देख ले जगत सभी अवतार।।
विश्वासी भक्तों की जो पकड़े है जीवन नैया। भवसागर के पार लगाने वाले मत्स्य खिवैया।।
कूर्मरूप से तीन लोक का भार उठाने वाले।
विचलित हुए बिना ही ये हैं इस जग के रखवाले।।
दुःखी व बन्दी भूमि सुता के दुःख को हरने वाले।
यही भौमि- वाराह, कष्ट धरती माता क्यों पा ले?
जंगल में सोते से इक दिन विश्वामित्र जगाएँ।
हे नरसिंह उठो! यह मधुर कण्ठ से गुरुवर गाएँ।।
झुकें बड़ों के सम्मुख हो विनम्र, वामन बन जाएँ।
वही त्रिविक्रम हो सागर पर शिला सेतु बनवाएँ।।
हर औ' हरि के चापों को यों सहज उठा लें राम।
क्रोध, अंश सत दोनों खोएँ, ऋषिवर परशुराम।।
बाली को पीछे से मारा, करें बुद्धि उपयोग।
बुद्ध बने यूँ, मित्र कर सके स्वयं राज उपभोग।।
शबरी के झूठे बेरों को खाकर दिया स्वधाम।
चिउड़े खाकर ज्यों सुदाम को देते कृष्ण सुधाम।।
वन स्थल में चौदह सहस्त्र को खड़े अकेले मारें।
रावण का ससैन्य वध झलक कल्कि रूप की धारें।।
यह केवल श्रीराम नहीं हैं, दशविध रूप दिखाएँ।
सार्व भौम हैं सौम्य रूप प्रियदर्शन सुधा पिलाएँ।।
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