Monday 22 June 2020

हम मुसाफ़िर..... फ़ैज़ की ग़ज़ल

हम मुसाफ़िर यूँही मसरूफ़-ए- सफ़र जाएँगे ।
बेनिशाँ हो गए जब शहर तो घर जाएँगे।। We are travellers, 'll go from stone to stone. 
From razed cities to home, we set the tone.....


. किस तरह होगा यहाँ महरो वफ़ा का मातम।
 हम तेरी याद से जिस रोज़ उतर जाएँगे।।..
... O what a sadness for love and trust ! 
When from the memories you disown..... 


जौहरी बंद किए जाते हैं बाज़ारे सुख़न। हम किसे बेचने अल्मासोगुहर जाएँगे?......
 Jewellers are closing markets of verse. 
To whom  can we sell our precious stone?.....
 नेमते ज़ीस्त का ये कर्ज़ चुकेगा कैसे? लाख घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे।।..... 
How to repay debt of gift of life?
 In trouble, we call the death our own.....
 फ़ैज़ आते हैं रहे इश्क़ में जो सख़्त मुकाम। 
जाने वालों से कहो हम तो गुज़र जाएँगे।।..... 
O Faiz! In love  route there are hurdles. 
To those who trod, say"we'll be gone. ".







No comments:

Post a Comment