Thursday 28 October 2021

AHMAD FARAZ..10.. COUPLETS

अगर तुम्हारी अना का ही है सवाल तो फिर।
लो अपना हाथ बढ़ाता हूँ दोस्ती के लिये। 

If it's a question of your ego, then well. 
I stretch my hand to break the spell. 

इस ज़िन्दगी में इतनी फ़राग़त किसे नसीब। 
इतना न याद आ कि तुझे भूल जाएँ हम। 

In this life, who can afford such a rest. 
Don't crowd memory to let me forget at best. 

सो देख कर तेरे रुख़सार-ओ-लब यक़ीं आया। 
कि फूल खिलते हैं गुलज़ार के अलावा भी। 

 Viewing your lips 'n cheeks have made my resolve harden. 
That the flowers can also bloom away from the garden. 

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें। 
जैसे कुछ सूखे हुए फूल किताबों में मिलें। 
If we part now, towards  dreams we may look. 
Like dry, forgotten flowers found in a book. 

इस से पहले कि बेवफ़ा हो जाएँ। 
क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ। 

Ere faithlessness becomes an art. 
O my friend ! Why don't we part ? 

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ। 
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ। 

If now you dislike, come to give some pain. 
You come back to leave me once again. 

आँख से दूर न जा, दिल से उतर जाएगा। वक़्त का क्या है, गुज़रता है गुज़र जाएगा

Don't get out of sight, from heart you will go. 
That time has a habit to flow, it will flow. 

अब और क्या किसी से मरासिम निभाएँ हम। 
ये भी बहुत है, तुझ को अगर भूल जाएँ हम। 

Now what relation with anyone should I increase. 
It will be enough, if flow of your memories could cease. 

तेरी बातें ही सुनाने आए। 
दोस्त भी दिल ही दुखाने आए। 

They made me listen to what you said. 
Friends too had some  more hurts fed. 

फिर उसी रहगुज़ार पर शायद। 
हम कभी मिल सकें मगर शायद। 

May be again, in that very lane. 
We may perhaps meet again. 

No comments:

Post a Comment