Wednesday 27 October 2021

GHAZAL.. JAVED AKHTAR.. KABHI KABHI MEIN YE SOCHTA HOON KI MUJHKO

कभी कभी मैं ये सोचता हूँ कि मुझको तेरी तलाश क्यूँ है ? 
कि जब हैं सारे ही तार टूटे तो साज़ में इस्तेआश क्यूँ है?

At times I think so, why in your pursuit should be I ?
All wires have broken down, yet this instrument trembles, why?

अजब दोराहे पे ज़िन्दगी है, कभी हवस दिल को खींचती है।
कभी ये शर्मिंदगी है दिल में कि इतनी फ़िक्र - ए-म 'आश क्यूँ है ?

Life is on a two way lane, heart is pulled by the lust. 
At times, I am ashamed, why should survival worry remain ?

उठा के हाथों से तुम ने छोड़ा, चलो न दानिश्ता तुम ने तोड़ा।
अब उल्टा हम से तो ये न पूछो कि शीशा ये पाश पाश क्यूँ है ?

You picked in hand, let it fall, unwillingly, let us so call.
But then asking me O pal, why did mirror shatter at  all. 

अगर कोई पूछता ये हमसे, बताते गर हम तो क्या बताते ?
भला हो सबका कि ये न पूछा कि दिल पे ऐसी ख़राश क्यूँ है ?

If someone had asked me how, what to tell him then or  now?
I must thank not tp ask, about scratch on heart and why ?

न फ़िक्र कोई न जुस्तजू है, न ख़्वाब कोई
न आरज़ू है ?
ये शख़्स तो कब का मर चुका है तो बे  कफ़न फिर ये लाश क्यूँ है ?

There's no thought, no search, no desire in it's perch.
This man died long ago, no coffin still covers it, why ? 

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