Wednesday 19 October 2022

MAJAAZ LAKHNAVI.... COUPLETS

तेरे जल्वों में घिर गया आख़िर
ज़र्रे को आफ़्ताब होना था 


उस महफ़िल-ए-कैफ़-ओ-मस्ती में उस अंजुमन-ए-इरफ़ानी में
सब जाम-ब-कफ़ बैठे ही रहे हम पी भी गए छलका भी गए 



बहुत कुछ और भी है इस जहाँ में
ये दुनिया महज़ ग़म ही ग़म नहीं है 


बताने वाले वहीं पर बताते हैं मंज़िल
हज़ार बार जहाँ से गुज़र चुका हूँ मैं 

सब का तो मुदावा कर डाला अपना ही मुदावा कर न सके
सब के तो गरेबाँ सी डाले अपना ही गरेबाँ भूल गए


मुझ को ये आरज़ू वो उठाएँ नक़ाब ख़ुद
उन को ये इंतिज़ार तक़ाज़ा करे कोई   

आँख से आँख जब नहीं मिलती
दिल से दिल हम-कलाम होता है 


क्या क्या हुआ है हम से जुनूँ में न पूछिए
उलझे कभी ज़मीं से कभी आसमाँ से हम 

कुछ तुम्हारी निगाह काफ़िर थी
कुछ मुझे भी ख़राब होना था 


ख़ूब पहचान लो असरार हूँ मैं
जिंस-ए-उल्फ़त का तलबगार हूँ मैं 

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