देवि त्वम् भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी।
कलौ हि कार्य सिद्धि अर्थम् उपायम् ब्रूहि यत्नतः।।
कर्मों का विधान करती हो, भक्त सुलभ हो देवी।
कहें, किस तरह कलियुग में, सम्पन्न कार्य हों देवी। ।
देवि उवाच_
शृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्व इष्ट साधनम्।
मया तव एव स्नेहेन् अपि अम्बा स्तुतिः प्रकाश्यते।।
देवी ने कहा _
स्नेह बहुत मुझ पर है हे हर ! कलियुग में हर भाँत।
कार्य सभी सम्पन्न करें जो, अंबास्तुति कहलात।।
ॐ ज्ञानिनाम् अपि चेतांसि देवी भगवती हि सा।
बलाद् आकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।।
बलपूर्वक हर लें उस चित को, जिस में है अभिमान।
महामाया के मोहजाल में, भटके उस का ज्ञान।।
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिम् अशेष जन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिम् अतीव शुभाम् ददासि।
दारिद्र्य दुःख भय हारिणि का तु अद् अन्या सर्व उपकार करणाय सदा आर्द्र चित्ता।।
स्मरण करे जब नर तो, भय का आर्द्रचित्त हों करें निदान।
दुःख, दरिद्रता, भय हर लें, दें बुद्धि, कौन है आप समान।।
सर्व मङ्गल मङ्गल्ये शिवे सर्व अर्थ साधिके। शरण्ये त्रि अम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते।।
मंगलमयी, शिवा, नारायणि, अर्थसिद्धि भी सब प्रकार है।
शरणागत वत्सला, त्रिनेत्री, गौरी, तुम को नमस्कार है।।
शरण आगत दीन आर्त परित्राण परायणे। सर्वस्य आर्ति हरे देवि नारायणि नमो ऽस्तु ते।।
माँ शरणागत पीड़ित की, रक्षा में जुटती हर प्रकार है।
दूर करें पीड़ा सब की, नारायणि तुमको नमस्कार है।।
सर्व स्वरुपे सर्वेशे सर्व शक्ति समन्विते ।
भयेभि अस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमो ऽस्तु ते।।
सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरि, शक्ति संपन्ना, सब प्रकार है।
अस्त्र भयों से रक्षा कीजे, गौरी तुमको नमस्कार है।
रोगान् अशेषान् अपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलान् अभि इष्टान्।
त्वाम आश्रितानाम् न विपन्नराणाम् त्वाम आश्रिता हि आश्रयितां प्रयान्ति।।
रुष्ट होंय तो रहें कामना, हों प्रसन्न तो रोग निदान।
शरण आपकी हों विपन्न न, करें और को शरण प्रदान।।
सर्व बाधा प्रशमनं त्रैलोकि अस्य अखिल इश्वरि।
एवम् एव तु अया कार्यम् अस्मद् वैरि विनाशनम् ।।
तीन लोक की हे अखिलेश्वरि, हर लें बाधा, हरें विकार।
कार्य करें सब मेरे देवी और वैरियों का संहार।।
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