Saturday 29 August 2020

BASHIR BADR.. GHAZAL.. BEKHABAR KURSIYAN...... ..

बेख़बर कुर्सियां आँख मलती रहीं। बस्तियां बेगुनाहों की जलती रहीं।
 Kept rubbing their eyes, chairs unaware. 
Dwellings of innocents were burning there. 
आदमीयत, मुहब्बत, शराफ़त, वफ़ा ।
नागिनें आस्तीनों में पलती रहीं। 
Humanity, nobility, loyalty, love. 
Snakes survived in sleeves over there. 
दो बदन जितने नज़दीक होते गए। 
क़ुर्बतें फ़ासलों में बदलती रहीं। 
When two persons continued to be close. 
Proximity turned to distance there. 
जब मिरी ज़िन्दगी में अंधेरा हुआ। 
मेरे चारों तरफ शम्एँ जलती रहीं। 
 When my life was in pitch dark. 
All around me were lamps aflair. 
ज़हर पानी बना मछलियों के लिए। 
पंछियों को हवाएं मसलती रहीं। 
Water turned into poison for fish. 
As birds were being crushed in  air. 
ज़िंदगी तेरी नाज़ुक बदन लड़कियां। 
आग की शाहराहों पे चलती रहीं। 
O life! These delicate girls of yours. 
On fiery paths, were walking there. 

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