Sunday 16 August 2020

BASHIR BADR.. GHAZAL.. SAR SE PA TAK VOH GULABON....

सर से पा तक, वो गुलाबों का शजर लगता है।
बावज़ू हो के भी, छूते हुए डर लगता है।
From head to foot she looks like a plant of rose.
 With washed hands, I touch her in fearful pose. 
मैं तेरे साथ सितारों से गुज़र सकता हूँ।
कितना आसान मुहब्बत का सफ़र लगताहै। 
With you, I can cross many stars.
In love, the goal is pleasingly close.
मुझ में रहता है कोई दुश्मने जानी मेरा।
ख़ुद से तन्हाई में मिलते हुए डर लगता है।
Within me, lives some enemy of mine.
Alone, meeting the self, fears expose. 
बुत भी रखे हैं, नमाज़ें भी अदा होती हैं।
दिल मेरा दिल नहीं, अल्लाह का घर लगता है।
Idols are there, Islamic prayers are made
My heart is not heart, appears God's repose.
ज़िन्दगी तूने मुझे क़ब्र से कम दी है जगह। पाँव फैलाऊँ तो दीवार से सर लगता है। 
O life! You allotted me space shorter than grave. 
With legs stretched, head bangs wall, so close. 

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