Monday 3 August 2020

FAIZ.. GHAZAL.. TUM AYE HO NA SHABE INTEZAR.....

तुम आए हो न शबे इंतज़ार गुज़री है। तलाश में है सहर बार बार गुज़री है।
Neither you came nor waiting night was spent.
 In search of you,the morning repeatedly went.
जुनूँ में जितनी भी गुज़री बकार गुज़री है। अगर दिल प ख़राबी हज़ार गुज़री है। 
Whatever has happened in madness was good.
Although this heart has received the dent. 
हुई है हज़रते नासेह से गुफ़्तगू जिस शब। वो शब ज़रूर सरे कूए यार गुज़री है। 
The night when I had talked with the priest. 
In the lover's lane that night was spent.
वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र था। 
वो बात उनको बहुत नागवार गुज़री है। 
That which never was a part of the tale.
It hurt her a lot and dislike it meant. 
न गुल खिले हैं न उनसे मिले न मय पी है। अजीब रंग में अब के बहार गुज़री है। 
 Neither flowers bloomed, nor we met and drank.
In a strange shade this spring came and went. 
चमन पे ग़ारते गुलचीं से जाने क्या गुज़री।
क़फ़स से आज सबा बेक़रार गुज़री है।
I know not what flower plucker did to the garden.
By prison side breeze was restless as it went. 

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