Friday, 2 June 2023

AHMAD FARAZ.. GHAZAL.. AASHIQUI MEN MIR JAISE KHWAB MAT DEKHA KARO...

आशिक़ी में 'मीर' जैसे ख़्वाब मत देखा करो 
बावले हो जाओगे महताब मत देखा करो 

In love, don't you see Mir like dreams. 
 No moon gaze or be lunatic, it seems. 

जस्ता जस्ता पढ़ लिया करना मज़ामीन-ए-वफ़ा 
पर किताब-ए-इश्क़ का हर बाब मत देखा करो 

Keep jumping and read the loyalty text. 
Don't look at  love book beyond means. 

इस तमाशे में उलट जाती हैं अक्सर कश्तियाँ 
डूबने वालों को ज़ेर-ए-आब मत देखा करो 

Often in this show, the ships overturn. 
Don't gaze at sunk as a matter of ease. 

मय-कदे में क्या तकल्लुफ़ मय-कशी में क्या हिजाब 
बज़्म-ए-साक़ी में अदब आदाब मत देखा करो 

NO formality in tavern, no veil for drunks. 
In wine girl's gathering, manners cease

हम से दरवेशों के घर आओ तो यारों की तरह 
हर जगह ख़स-ख़ाना ओ बर्फ़ाब मत देखा करो 

While visiting saints, come as friends.
 No scent curtains, chilled water please. 

माँगे-ताँगे की क़बाएँ देर तक रहती नहीं 
यार लोगों के लक़ब-अलक़ाब मत देखा करो 

The borrowed dresses don't last long. 
Don't look for dresses of honour please. 

तिश्नगी में लब भिगो लेना भी काफ़ी है 'फ़राज़' 
जाम में सहबा है या ज़हराब मत देखा करो

In thirst, it's enough  to soak lips 'Faraz'! 
Cup has wine or poison, don't see please ? 

AHMAD FARAZ.. GHAZAL.. AB AUR KYA KISII SE MARASIM BADHAYEN HAM.....

अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम 
ये भी बहुत है तुझ को अगर भूल जाएँ हम 

What more relations should I increase? 
It 'll be better for your memory to cease. 

सहरा-ए-ज़िंदगी में कोई दूसरा न था 
सुनते रहे हैं आप ही अपनी सदाएँ हम 

There was none else in the desert of life. 
I am listening to my own cries on lease. 

इस ज़िंदगी में इतनी फ़राग़त किसे नसीब 
इतना न याद आ कि तुझे भूल जाएँ हम 

Who has such lease from labour in life? 
Don't crowd memories or I forget these. 

तू इतनी दिल-ज़दा तो न थी ऐ शब-ए-फ़िराक़ 
आ तेरे रास्ते में सितारे लुटाएँ हम 

You weren't so grief struck parting night. 
 Let me shower stars on your path please. 

वो लोग अब कहाँ हैं जो कहते थे कल 'फ़राज़' 
हे हे ख़ुदा-न-कर्दा तुझे भी रुलाएँ हम

O 'Faraz'! Where are the men who 'd say?
God forbid, let's make you too weep please. 

Thursday, 1 June 2023

PARVEEN SHAAKIR ... GHAZAL.. MUSHKIL HAI KI AB SHAHAR MEN NIKLE KOI GHAR SE......

मुश्किल है कि अब शहर में निकले कोई घर से 

दस्तार पे बात आ गई होती हुई सर से 

बरसा भी तो किस दश्त के बे-फ़ैज़ बदन पर 

इक उम्र मिरे खेत थे जिस अब्र को तरसे 

कल रात जो ईंधन के लिए कट के गिरा है 

चिड़ियों को बड़ा प्यार था उस बूढ़े शजर से 

मेहनत मिरी आँधी से तो मंसूब नहीं थी 

रहना था कोई रब्त शजर का भी समर से 

ख़ुद अपने से मिलने का तो यारा न था मुझ में 

मैं भीड़ में गुम हो गई तन्हाई के डर से 

बे-नाम मसाफ़त ही मुक़द्दर है तो क्या ग़म 

मंज़िल का तअ'य्युन कभी होता है सफ़र से 

पथराया है दिल यूँ कि कोई इस्म पढ़ा जाए 

ये शहर निकलता नहीं जादू के असर से 

निकले हैं तो रस्ते में कहीं शाम भी होगी 

सूरज भी मगर आएगा इस रहगुज़र से