Thursday 21 January 2016

Krishna Janm

धन्य कंस का कारागार। हरि ने लिया जहाँ अवतार।
वसु देवकी करें प्रणाम। लेलेकर श्री हरि का नाम।
बाल रूप धार्यो गोपाल। मात-पिता नैं कर्यो निहाल।
बेड़ी खुली, खुले सब द्वार।  सोए सारे पहरेदार।
कृष्ण सूप पर लिए उठाय। चलें जहाँ रहते नन्दराय।
जमुना जल में रहा उठाव। छूना चाहे हरि का पाँव।
छूकर पानी नीचे जाय। जमना जल भी दर्शन पाय।
बालकृष्ण नैं दियो सुलाय। और बालिका लई उठाय।
वसु पहुँचे फिर कारागार। बेड़ी लगी बन्द सब द्वार।
जन्म जान आया भूपाल। इसे शिला पर दूँ अब डाल।
उड़ी हाथ से कहा पुकार। जन्मा तेरा मारनहार।

- रवि मौन 

Tuesday 19 January 2016

कवि की कल्पना...

है यह कवि की कल्पना जिसने दिया निखार। 
शब्दों के भ्रमजाल को आज मिला आकार।।
डूबे ख़ुशियों में कभी, रहे कभी ग़मगीन। 
कुछ कर्मों का फल मिला, कुछ विधि के आधीन।।
काल-चक्र चलता रहा कोई सका न रोक। 
नई योनि मिलती रही, मिटे हर्ष और शोक।।
कर्मों का संचय रहा, सदा हमारे साथ। 
दोनों के फ़ल मिलेंगे, जब चाहें रघुनाथ।।
नर नारायण भी यहाँ युद्ध स्थल में जायँ। 
बाँटें गीता ज्ञान को, मानव को समझायँ।।

-रवि मौन  

Saturday 16 January 2016

नाम की महिमा कितनी भारी

पाप करम में लीन अजामिल अपणी उमर बिताई ।
नारायण को नाम ले लियो अन्त घड़ी जब आई।
यम का दूत हताश चल दिया बैकुण्ठां तैयारी।।
नाम की महिमा कितनी भारी।

रत्नाकर डाकू जीवन भर राही कितना लूट्या।
नारद जी नै दया आ गई मोह जाल तब टूट्या।
मरा मरा रट सन्त बण गयो जाणै दुनिया सारी।।
नाम की महिमा कितनी भारी।

- रवि मौन
०५-०२-१९९०

Thursday 14 January 2016

शिव स्तुति

चन्द्र बढ़ाए शोभा सर की गंग जटा में साजे।
नीलकण्ठ हैं भोले बाबा गले भुजंग बिराजे।।
चेहरे पर त्रिनेत्र शोभित हैं कर में है तिरशूल।
 भस्म लगा कर तन में श्रीहर गए उमा को भूल।।
लगी समाधि सदाशिव की तो गणना काल बिसारी।
राघवेन्द्र का ध्यान लगा कर बैठ गए त्रिपुरारी।।

-रवि मौन
१६-०२-२०१४

Tuesday 12 January 2016

रावण...

मुनि पुलस्त्य का वंशधर, इतना प्रतिभावान।
शिवभक्तों में अग्रसर, रावण था बलवान।
स्वर्णलंक का अधिपति, बना धरा का भार।
अहंकार में मिट गया, हर लाया हरि नार।।

-रवि मौन
२३-०३-२०१४  

Friday 8 January 2016

आज तो युद्ध हो रह्यो भारी...

आज तो युद्ध हो रह्यो भारी

आज पितामह बचन ले लियो शस्त्र धरैं बनवारी
ऐसो भीषण युद्ध कर्यो है पाण्डव सेना हारी
बिछ्यो तीर को जाल हर तरफ मार हो रही भारी
अर्जुन जब तीरां सै बिंधग्यो रुक नहीं सक्या मुरारी
कूद्या रथ सैं बढ़या भीष्म की ओर सुदर्शन धारी
धनुष छोड़ रह्यो हाथ जोड़, कह्यो हे नटवर असुरारी
अपनी आन तोड़ दी मेरो प्रण राख्यो गिरधारी !

आज तो युद्ध हो रह्यो भारी।

-रवि मौन
१-२-१९९० 

Wednesday 6 January 2016

ज़िन्दगी तुझ से बिछड़ के भी... ग़ज़ल

ज़िन्दगी तुझसे बिछड़ के भी तो गुज़री है मगर।
किसको समझाऊँ कि ये कैसे कटा मेरा सफ़र।।

दूर से आती सदा देती है दस्तक दिल पर।
याद आते हैं मुझे झूले ठिठौली वो शजर।।

आसमाँ ऊँचा बहुत, गहरा समन्दर कितना।
दोनों यकरंग ही हैं किसलिए, हैरान बशर।।

इतना शर्मिंदा हूँ इंसान की करतूतों से।
कैसे पहचानूँगा शैतान अगर आया नज़र।।

यूँ तो इक उम्र मेरी बीती है कस्बे में "मौन" ।
मुझको भूली नहीं है गाँव की सुनसान डगर।।

- रवि मौन
१६-१०-'१५ 

Saturday 2 January 2016

कलरव

वह चिड़िया जो सुबह सवेरे अपने संगी साथी का
इक झुण्ड बना कर कलरव करती उठ जाती है।
वह गर्वीली भूरे पंखों वाली छोटी चिड़िया मैं हूँ
इसे न काटो मुझे पेड़ से बहुत प्यार है।

- रवि मौन
१०-१०-२००९ 

Friday 1 January 2016

Nainan ke path

नैनन के पथ मन में उतरी जब से तुमको देखा।
तू मेरे  दिल की शहज़ादी और भाग्य की रेखा।।

ओ मेरे सपनों की रानी, कैसे तुझे बताऊँ ?
कब से तेरी राह निहारी, मैं कैसे समझाऊँ ?

जीवन पथ के एकल राही हाथ थामले मेरा।
जब तक डोर बंधी साँसों की साथ न छूटे तेरा।।

- रवि मौन
#Ravimaun