Saturday 23 September 2023

ZAFAR IQBAL... GHAZAL.. YE NARM NARM GHAAS YE PHOOLON BHARII ZAMIIN.....

ये नर्म नर्म घास ये फूलों भरी ज़मीं
इक दिन बहा था ख़ून का दरिया यहीं कहीं 

This silk soft grass, this flower rich land.
A blood stream had once flowed this sand.

किस को पता है टूटते पत्तों की टोलियाँ
उड़ती हवा के साथ किसे ढूँढने चलीं 

In whose pursuit do they whirl with wind ? 
Who knows about falling leaves in a band ? 

किस जुस्तजू में जिस्म जलाते हैं रात भर 
सच पूछिए तो इस की हमें भी ख़बर नहीं 

In search of what do we burn night long? 
To speak truth , I 've no knowledge in hand. 

चुपचाप तीरगी के नशेबों में सो रहे 
जिन की नज़र में जागती शम'एँ भी हेच थीं 

In the reign of darkness, they silently slept. 
Whose eyes never rated glowing candles grand. 












Monday 11 September 2023

राघवयादवीयम. हिन्दी रूपान्तरण

वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रंतारं कालं भासा यः।

रामो रामाधीराप्यागो लीलाभारायोध्ये वासे।। 1।।

जिनके उर में सीता का वास,
मुझे उन रामचरण की आस,
करूँ वन्दन मैं तो श्रीराम। 

सीतु हेतु सह्याद्रि होकर,
लंका जा रावण का वध कर,
पूरा कर वनवास, फिरे अवध धाम।। 1।।

Wednesday 6 September 2023

HAFIIZ JALANDHARII... GHAZAL...

क्यूँ हिज्र के शिकवे करता है क्यूँ दर्द के रोने रोता है 

अब इश्क़ किया तो सब्र भी कर इस में तो यही कुछ होता है 

आग़ाज़-ए-मुसीबत होता है अपने ही दिल की शामत से 

आँखों में फूल खिलाता है तलवों में काँटे बोता है 

अहबाब का शिकवा क्या कीजिए ख़ुद ज़ाहिर ओ बातिन एक नहीं 

लब ऊपर ऊपर हँसते हैं दिल अंदर अंदर रोता है 

मल्लाहों को इल्ज़ाम न दो तुम साहिल वाले क्या जानो 

ये तूफ़ाँ कौन उठाता है ये कश्ती कौन डुबोता है 

क्या जानिए ये क्या खोएगा क्या जानिए ये क्या पाएगा 

मंदिर का पुजारी जागता है मस्जिद का नमाज़ी सोता है 

ख़ैरात की जन्नत ठुकरा दे है शान यही ख़ुद्दारी की 

जन्नत से निकाला था जिस को तू उस आदम का पोता है

Monday 4 September 2023

देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम् अंतिम दो श्लोक श्रीदुर्गासप्तशत्यम्... हिन्दी रूपान्तरण... रवि मौन

जगदम्ब विचित्रमत्र किं परिपूर्णा करुणास्तु चेन्मयि। 
अपराध परम्परापरं न हि माता समुपेक्षते सुतम्।। 

जगदम्ब मुझ पर जो कृपा अब भी तुम्हारी है बनी। 
कुछ भी नहीं आश्चर्य इस में यह सदा से ही रही। 
अपराध पर अपराध भी यदि कर रहा, सुत मान कर। 
माता कभी करती नहीं उस की उपेक्षा, जान कर।। 

मत्समः पातकी नास्ति पापघ्नी त्वत्समा न हि। 
एवं ज्ञात्वा महादेवि यथायोग्यं तथा कुरु।। 

मुझ सा नहीं है पातकी, न हि पापनाशक आप सा। 
यह जान कर माता करें, जो मन करे सो आप का।।