Monday 13 April 2015

फ़िराक़ के अश'आर..16. थी यूँ तो शाम-ए-हिज्र

थी यूँ तो शाम-ए-हिज्र मगर पिछली रात को
वो दर्द उठा फ़िराक़ कि मैं मुस्कुरा दिया।

- फ़िराक़ गोरखपुरी

On the eve of departure in late night hours
So severe was the pain that it made 'Firaaq' smile.

मुतरिब से कहो, आज इस अंदाज़ से गाए।
 हर दिल पे लगे चोट सी, हर आँख भर आए।।
Tell the singer to sing in such a fine style. 
That hurts every heart 'n in eyes tears pile.


बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं। 
तुझे ऐ ज़िन्दगी! हम दूर से पहचान लेते हैं।।
Quite early do I recognise your footfall. 
O life! I know you from a far, after all. 


आधी से ज़्यादा शबे ग़म काट चुका हूँ।
अब भी अगर आ जाओ तो ये रात बड़ी है।। 
I have passed more than half of this painful night. 
If you come even now, enough is left in the night.


अब यादे रफ़्तगाँ की भी हिम्मत नहीं रही। यारों ने इतनी दूर बसाई हैं बस्तियाँ।।
 Old memories have lost the desire to persist. 
So far have chums made homes to exist. 

रंग-ए-जहाँ बदल गया, शान-ए-अदम बदल गई। 
दुखते दिलों से पिछली रात आई है वो सदा कि बस। 

There was a change in colours of this world 'n those of divine. 
Last night from  troubled souls emenated such sounds in line. 

ये माना ज़िन्दगी है चार दिन की 
बहुत होते हैं यारो चार दिन भी। 

I agree life is a four days slot. 
Chums ! Four days are quite a lot. 

दिल थामता कि चश्म पे रखता तिरी निगाह ? 
साग़र को देखता कि मैं शीशा संभालता? 

Could I hold my heart or your eyes behold ? 
Could I look at the goblet or glass on hold ? 

तारीकियाँ चमक गयीं आवाज़-ए-दर्द से
मेरी ग़ज़ल से रात की ज़ुल्फ़ें सँवर गईं। 

The darkness by pain sounds got bright. 
My ghazal groomed the tresses of night.

एक मुद्दत से तिरी याद भी आई हमें

और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं

Since long, you are not on my memory tract. 

But that I have forgotten you, is not a fact.  

 कोई समझे तो एक बात कहूँ

इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं

  • टैग्ज़ : इश्क़ 
    मौत का भी इलाज हो शायद

ज़िंदगी का कोई इलाज नहीं

  • टैग्ज़ May be, for death, there is a cure. 
  • There's none for life, I am sure. 
  • तारा टूटते सबने देखा
  • ये ना देखा एक नए भी। 
    किसकी आँख से आँसू टपका किसका सहारा छूट गया। 

    All have seen a shooting star, none observed the things at par. 
    From whose eye has dropped a tear, who has lost support O dear ? 
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तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो

तुम को देखें कि तुम से बात करें

इस शे’र में एक तरह की दिलचस्प उलझन भी है और इस उलझन में लज़्ज़त भी है। लुत्फ़ की बात ये है कि शायर का महबूब उससे बात भी करता है और उसके पास बैठा भी है। यानी मिलन की स्थिति है। मगर उलझन इस बात की है कि शायर अपने महबूब से बात करे कि वो उसको देखता रहे। यानी वह एक ही समय में तीनों बातों का आनंद उठाना चाहता है। वो अपने महबूब के निकटता भी चाहता है। उसकी बातें सुनके आनंद भी उठाना चाहता है और जब ये कहा कि तुमसे बात करें तो यह स्पष्ट हुआ कि वो अपने महबूब से अपने दिल की बात भी कहना चाहता है। मगर उसे असली खुशी तो महबूब को देखने से ही मिलती है।

You are addressing me from so near. 

Should I talk with , or look at you, dear ? 

ख़ैर तुम ने तो बेवफ़ाई की

What in love, could I achieve ? 

You could at least deceive ! 

  • कोई वा'दा कोई यक़ीं कोई उमीद

मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था

Neither there was promise,  assurance, nor any hope. 

But waiting for you was all within  my scope. 

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मैं हूँ दिल है तन्हाई है

तुम भी होते अच्छा होता

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ग़रज़ कि काट दिए ज़िंदगी के दिन दोस्त

वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में

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शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास

दिल को कई कहानियाँ याद सी के रह गईं

Smoky was the eve' , sad was the eve. 

Some stories, memory could perceive. 

तारा टूटते सबने देखा, ये न देखा एक नए भी। 

किस की आँख से आँसू टपका, किस का सहारा छूट गया ? 

All have seen a shooting star, none observed the things at par. 

From whose eye has dropped a tear, who has lost support O dear ? 

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तेरे आने की क्या उमीद मगर

कैसे कह दूँ कि इंतिज़ार नहीं

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आए थे हँसते खेलते मय-ख़ाने में 'फ़िराक़'

जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए

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कम से कम मौत से ऐसी मुझे उम्मीद नहीं

ज़िंदगी तू ने तो धोके पे दिया है धोका

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अब तो उन की याद भी आती नहीं

कितनी तन्हा हो गईं तन्हाइयाँ

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बहुत दिनों में मोहब्बत को ये हुआ मा'लूम

जो तेरे हिज्र में गुज़री वो रात रात हुई

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जो उन मासूम आँखों ने दिए थे

वो धोके आज तक मैं खा रहा हूँ

  • टैग्ज़ : आँख 
    और 2 अन्य
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ज़िंदगी क्या है आज इसे दोस्त

सोच लें और उदास हो जाएँ

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कुछ पूछो 'फ़िराक़' अहद-ए-शबाब

रात है नींद है कहानी है

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    ज़रा विसाल के बाद आइना तो देख दोस्त

    तिरे जमाल की दोशीज़गी निखर आई

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    रात भी नींद भी कहानी भी

    हाए क्या चीज़ है जवानी भी

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    किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी

    ये हुस्न इश्क़ तो धोका है सब मगर फिर भी

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    इक उम्र कट गई है तिरे इंतिज़ार में

    ऐसे भी हैं कि कट सकी जिन से एक रात

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    मैं मुद्दतों जिया हूँ किसी दोस्त के बग़ैर

    अब तुम भी साथ छोड़ने को कह रहे हो ख़ैर

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      लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है

      उछल रहा है ज़माने में नाम-ए-आज़ादी

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      देख रफ़्तार-ए-इंक़लाब 'फ़िराक़'

      कितनी आहिस्ता और कितनी तेज़

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      साँस लेती है वो ज़मीन 'फ़िराक़'

      जिस पे वो नाज़ से गुज़रते हैं

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      खो दिया तुम को तो हम पूछते फिरते हैं यही

      जिस की तक़दीर बिगड़ जाए वो करता क्या है

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      सुनते हैं इश्क़ नाम के गुज़रे हैं इक बुज़ुर्ग

      हम लोग भी फ़क़ीर इसी सिलसिले के हैं

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        तुझ को पा कर भी कम हो सकी बे-ताबी-ए-दिल

        इतना आसान तिरे इश्क़ का ग़म था ही नहीं

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        कोई आया आएगा लेकिन

        क्या करें गर इंतिज़ार करें

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        तबीअत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में

        हम ऐसे में तिरी यादों की चादर तान लेते हैं

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        आने वाली नस्लें तुम पर फ़ख़्र करेंगी हम-असरो

        जब भी उन को ध्यान आएगा तुम ने 'फ़िराक़' को देखा है

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        मैं देर तक तुझे ख़ुद ही रोकता लेकिन

        तू जिस अदा से उठा है उसी का रोना है

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          रोने को तो ज़िंदगी पड़ी है

          कुछ तेरे सितम पे मुस्कुरा लें

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            जिस में हो याद भी तिरी शामिल

            हाए उस बे-ख़ुदी को क्या कहिए

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            तिरे पहलू में क्यूँ होता है महसूस

            कि तुझ से दूर होता जा रहा हूँ

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              सर-ज़मीन-ए-हिंद पर अक़्वाम-ए-आलम के 'फ़िराक़'

              क़ाफ़िले बसते गए हिन्दोस्ताँ बनता गया

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              आज बहुत उदास हूँ

              यूँ कोई ख़ास ग़म नहीं

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                पर्दा-ए-लुत्फ़ में ये ज़ुल्म-ओ-सितम क्या कहिए

                हाए ज़ालिम तिरा अंदाज़-ए-करम क्या कहिए

                • टैग्ज़ : अदा 
                  और 1 अन्य
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                देवताओं का ख़ुदा से होगा काम

                आदमी को आदमी दरकार है

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                कह दिया तू ने जो मा'सूम तो हम हैं मा'सूम

                कह दिया तू ने गुनहगार गुनहगार हैं हम

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                  कौन ये ले रहा है अंगड़ाई

                  आसमानों को नींद आती है

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                  कहाँ इतनी ख़बर उम्र-ए-मोहब्बत किस तरह गुज़री

                  तिरा ही दर्द था मुझ को जहाँ तक याद आता है

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                    शक्ल इंसान की हो चाल भी इंसान की हो

                    यूँ भी आती है क़यामत मुझे मा'लूम था

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                      असर भी ले रहा हूँ तेरी चुप का

                      तुझे क़ाइल भी करता जा रहा हूँ

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                      आँखों में जो बात हो गई है

                      इक शरह-ए-हयात हो गई है

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                      शामें किसी को माँगती हैं आज भी 'फ़िराक़'

                      गो ज़िंदगी में यूँ मुझे कोई कमी नहीं

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                      तुम इसे शिकवा समझ कर किस लिए शरमा गए

                      मुद्दतों के बा'द देखा था तो आँसू गए

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