Sunday 25 October 2020

GHAZAL.. JIGAR.. DIL MEN KISI KE RAAH KIYE JA RAHAA........

दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं।
कितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं। 

In someone's heart I am making a way.
What a beautiful sin is having it's say. 

गुलशनपरस्त हूँ मुझे गुल ही नहीं अज़ीज़
काँटों से भी निबाह किए जा रहा हूँ मैं। 

A garde lover, flowers alone aren't dear to me. 
With me even thorns are having a say. 

यूँ ज़िन्दगी गुज़ार रहा हूँ तेरे बग़ैर। 
जैसे कोई गुनाह किए जा रहा हूँ मैं। 

As if I am committing one grave sin. 
Without you, my life is passing this way.

  न मै की आरज़ू है न साक़ी से कोई काम
आँखों से मस्त जाम पिए जा रहा हूँ मैं। 

Neither I long for wine nor wine girl's nod.
Drink from her eyes is so intoxicating to say.

फ़र्दे अमल सियाह किए जा रहा हूँ मैं। 
रहमत को बेपनाह किए जा रहा हूँ मैं। 

I am darkening man's role to such an extent. 
Almighty is boundless, appealing to say. 

 मुझ से लगे हैं इश्क़ की अज़्मत में चार चांद। 
ख़ुद हुस्न को गवाह किए जा रहा हूँ  मैं। 

Dignity of love has turned fourfold. 
Beauty in itself is witnessing the stay. 

मासूमिए जमाल पे भी जिस को रश्क हो। ऐसे भी कुछ गुनाह किए जा रहा हूँ मैं। 

Envy of simplicity of beauty it is. 
The type of sins I am commuting today. 

मुझसे अदा हुआ है 'जिगर' ज़िन्दगी का हक़। 
हर ज़र्रे को गवाह किए जा रहा हूँ मैं। 

O 'Jigar' I have played a searcher's role. 
Every grain of sand is witnessing my say. 




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