Thursday 28 October 2021

FAIZ AHMAD FAIZ...5.... COUPLETS

उन्हीं के फ़ैज़ से बाज़ार - ए-अक़्ल रौशन है।
जो गाह गाह जुनूँ इख़्तियार करते रहे। 

Market of wisdom is alit with their grace. 
Who at sites could set frenzy  in place.

वीराँ है मयकदा ख़ुम-ओ-साग़र उदास हैं।
तुम क्या गए कि रूठ गए दिन बहार के।

The tavern is deserted, winepot are sad. 
After you left, mood of spring is bad.

रंग पैराहन का ख़ुशबू ज़ुल्फ़ लहराने का नाम। 
मौसम-ए-गुल है तुम्हारे बाम पर आने का नाम।

Your dress of vibrant colours, your tress is name of fragrance
Your coming on roof top has season of spring as essence.

तुम आए हो न शब-ए-इंतिज़ार गुज़री है।
तलाश में है सहर बार बार गुज़री है। 
You have not come, night of waiting exists. 
While the morning in it's search persists.

न गुल खिले हैं न उन से मिले न मय पी है। 
अजीब तरह से अब के बहार गुज़री है। 

Neither flowers bloomed, nor I met her, nor wine was glassed. 
A typically, in a strange way, this spring has passed. 

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