Wednesday 2 December 2020

BASHIR BADR.. GHAZAL.. TEER NAZRON KE TO PALKON KI....

तीर नज़रों के तो पलकों की कमाँ रखते हैं।
उनकी क्या बात है फूलों की ज़ुबाँ रखते हैं। 

On bows of eyebrows, sight arrows explore. 
What to tell, she has flowery tongue to score. 

हम तो आँखों में सँवरते हैं वहीं सँवरेंगे। 
हम नहीं जानते आईने कहाँ रक्खे हैं। 

I've dressed in your eyes, will dress there. 
I know not where mirror is kept 
In store. 

अपने क़ातिल भी उसी रोज़ से शर्मिंदा हैं।
हम भी ख़ामोश बहुत अपनी ज़ुबाँ रक्खे हैं। 

My assassin's are also ashamed since then. 
My tongue too is quiet, speaks no more. 

 दिल कभी रेत का साहिल नहीं होने देते। 
हम ने महफ़ूज़ वो क़दमों के निशाँ रक्खे हैं। 

I have  those delicate footprints
My heart can't become a sandy shore. 

जिन पे तहरीर हैं बचपन की मुहब्बत अपनी। 
अब मिरे घर के वो दरवाज़े कहाँ रक्खे हैं।

Where are those doors of my home. 
On which is scrolled childhood love-lore. 





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