देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी।
कलौ ही कार्यसिद्ध्यर्थमुपायं ब्रूहि यत्नतः।।
शिवजी ने कहा
कर्मों का विधान करती हो सर्वसुलभ हो देवी।
कहें किस तरह कलियुग में सम्पन्न कार्य हों देवी।।
देव्युवाच
शृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम्।
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिःप्रकाश्यते ।।
देवी ने कहा
स्नेह बहुत मुझ पर है हे हर कलयुग में सब भाँत।
कार्य सभी सम्पन्न करें जो अम्बास्तुति कहलात।।
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ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।। 1।।
बलपूर्वक हर लें उस चित को जिस में है अभिमान।
दुःख दरिद्रता भय हर लें जो कौन और हैं आप समान।।
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दुर्गे अमृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः अमृता मतिमतीव शुभांक ददासि।
दारिद्र्यदुःखहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता।। 2।।
स्मरण करें जब नर तो भय का आर्द्रचित्त हो करें निदान।
दुःख दरिद्रता भय हर लें जो और कौन है. आप समान।।
सर्वमङगलमङगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते।। 3।।
मंगलमयी शिवा नारायणि अर्थसिद्ध भी हर प्रकार है।
शरणागत वत्सला त्रिनेत्री गौरी तुम को नमस्कार है।।
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोस्तु ते।। 4।।
माँ शरणागत पीड़ित की रक्षा में जुटती हर प्रकार है।
दूर करें पीड़ा सब की नारायणि तुम को नमस्कार है।।
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तु ते।। 5।।
सर्वस्वरूपा सर्वेश्वर शक्ति सम्पन्न सब प्रकार है।
सभी भयों से रक्षा कीजे दुर्गा देवी नमस्कार है।।
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा
रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।। 6।।
कुपित होंय तो रहें कामना हों प्रसन्न तो रोग निदान।
शरण आपकी हो विपन्न ना करें और को शरण प्रदान।।
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्।। 7।।
तीन लोक की हे अखिलेश्वरि ! हर लें बाधा हरें विकार।
कार्य करें सब मेरे देवी और वैरियों का संहार।।
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