और काँटे कभी नहीं खिलते
फिर भी काँटों की मेहरबानी है
वर्ना ये फूल याँ नहीं मिलते
कभी पाओं में पड़ते हैं
कभी दामन पकड़ते हैं
कोई मेहमाननवाज़ी सीख ले
ख़ार-ए बयाबाँ से
दामन-ए-यार से
जा लिपटे हमारे आँसू
गिर के इस तरह
सम्भलते हैं सम्भलने वाले
वो लोग जिन्होंने ख़ूँ देकर
इस बाग़ को ज़ीनत बख़्शी है
दो चार से दुनिया वाकिफ़ है
गुमनाम न जाने कितने हैं
जाम-ए-मय तौबा-शिकन
तौबा मिरी जाम-शिकन
सामने ढेर है
टूटे हुए पैमानों का
हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए
चरागों की तरह आँखें जलें जब शाम हो जाए
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाए
कल न हो ये कि मकीनों को तरस जाए ये घर
दिल के आसेब का हर एक से चर्चा न करो
जैसे वर्क़-ए-गुल पर अंगारा कोई रख दे
यूँ दस्त-ए-हिनाई पर आँसू अभी टपका है
दिल की बस्ती भी शहर-ए-दिल्ली है
जो भी गुज़रा है उस ने लूटा है
उड़ते उड़ते आस का पंछी दूर उफ़क़ में डूब गया
रोते-रोते बैठ गई आवाज़ किसी सौदाई की
कहते हैं उम्र-ए-रफ़्ता कभी लौटती नहीं
जा मैकदे से मेरी जवानी उठा के ला
एक गुस्ताख़ी करूँगा वो भी मर जाने के बाद
यार तुम पैदल चलोगे मैं जनाज़े पर सवार
जाती हुई मय्यत देख तो ली पर देख के भी तुम आ न सके
दो चार क़दम तो दुश्मन भी तकलीफ़ गवारा करते हैं
मेरे ख़ुदा मुझे थोड़ी सी ज़िंदगी दे दे
उदास मेरे जनाज़े से जा रहा है कोई
मेरी लाश के सिराहने वो खड़े ये कह रहे हैँ
इसे नींद यूँ न आती अगर इंतज़ार होता
तेरे वादे पर मितमगर अभी और सब्र करते
अगर अपनी ज़िन्दगी का हमें एतबार होता
ग़ैर ने तुम को जाँ कहा समझे भी तुम कि क्या कहा
यानी कि बे-वफ़ा कहा जान का एतबार क्या
ग़ज़ब किया तेरे वादे पे ए'तिबार किया
तमाम रात क़यामत का इंतजार किया
बाद-ए-मुर्दन कुछ नहीं यह फ़लसफ़ा मरदूद है
देखिए इंसान को मुर्दा है और मौजूद है
उन की याद आई है साँसों ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
चूम लेती हैं कभी लब कभी आरिज़-ए-गुल
तूने ज़ुल्फ़ों को बड़ा सर पे चढ़ा रक्खा है
यार-आशना नहीं कोई टकराएँ कि से जाम
किस बे-वफ़ा की याद में ख़ाली सुबू करें
मै से ग़रज़ निशात है किस रू-सियाह को
इक गूना बे-ख़ुदी मुझे दिन - रात चाहिए
आया ही था ख़याल कि आँखें छलक पड़ीं
आँसू किसी की याद के कितने क़रीब हैं
दिल टूटने से थोड़ी सी तकलीफ़ तो हुई
लेकिन तमाम उम्र का आराम हो गया
दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं
कितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं
ज़ाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर
या वो जगह बता दे जहाँ पर ख़ुदा न हो
मस्जिद दिखा हिला के दुआ में जो अस्र है
दो घूँट पी वगर्ना औ' मस्जिद को हिलता देख
जब वो मेरे क़रीब से हँस कर गुज़र गए
कुछ ख़ास दोस्तों के भी चेहरे उतर गए
किसी को क्या हो दिलों की शिकस्तगी की ख़बर
कि टूटने में ये शीशे सदा नहीं करते
चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ
चाह नहीं मैं चढूँ देव के शीश भाग्य पर इठलाऊँ
मुझे तोड़ लेना वनमाली औ' उस पथ पर देना फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएँ वीर अनेक
माखन लाल चतुर्वेदी
To decorate mane of a beautiful dame is not my desire.
Or adorn god's heads and turn heads With envy 'n fire.
O gardener of jungle, just don't bungle, pluck me and throw.
With heads on hand to sacrifice for motherland, soldiers' d go.
तुम्हारे हुस्न की बस और क्या करूँ तारीफ़
नहीं कोई भी शै ऐसी, कहूँ मैं तुझ जैसी
रवि मौन
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