उस ने मगर बिछड़ते वक़्त और सवाल कर दिया
हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा
क्या ख़बर थी कि रग-ए-जाँ में उतर जाएगा
कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी
मैं अपने हाथ से उस की दुल्हन सजाऊँगी
याद तो होंगी वो बातें तुझे अब भी लेकिन
शेल्फ़ में रक्खी हुई बंद किताबों की तरह
शाम भी हो गई धुँदला गईं आँखें भी मिरी
भूलने वाले मैं कब तक तिरा रस्ता देखूँ
मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी
वो झूट बोलेगा और ला-जवाब कर देगा
काँटों में घिरे फूल को चूम आएगी लेकिन
तितली के परों को कभी छिलते नहीं देखा
बस ये हुआ कि उस ने तकल्लुफ़ से बात की
और हम ने रोते रोते दुपट्टे भिगो लिए
कुछ फ़ैसला तो हो कि किधर जाना चाहिए
पानी को अब तो सर से गुज़र जाना चाहिए
कल रात जो ईंधन के लिए कट के गिरा है
चिड़ियों को बड़ा प्यार था उस बूढ़े शजर से
अल्हड़ बीकानेरी की हास्य कव्वाली- 'होठों से छुआ के मूंगफ़ली माशूक के मारा करते हैं'
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