Friday 4 August 2023

MIRZA GHALIB.. GHAZAL.. NUKTA-CHIIN HAI GHAM-E-DIL US KO SUNAYE N BANE ......

नुक्ता-चीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाए न बने 

क्या बने बात जहाँ बात बनाए न बने 

मैं बुलाता तो हूँ उस को मगर ऐ जज़्बा-ए-दिल 

उस पे बन जाए कुछ ऐसी कि बिन आए न बने 

खेल समझा है कहीं छोड़ न दे भूल न जाए 

काश यूँ भी हो कि बिन मेरे सताए न बने 

ग़ैर फिरता है लिए यूँ तिरे ख़त को कि अगर 

कोई पूछे कि ये क्या है तो छुपाए न बने 

इस नज़ाकत का बुरा हो वो भले हैं तो क्या 

हाथ आवें तो उन्हें हाथ लगाए न बने 

कह सके कौन कि ये जल्वागरी किस की है 

पर्दा छोड़ा है वो उस ने कि उठाए न बने 

मौत की राह न देखूँ कि बिन आए न रहे 

तुम को चाहूँ कि न आओ तो बुलाए न बने 

बोझ वो सर से गिरा है कि उठाए न उठे 

काम वो आन पड़ा है कि बनाए न बने 

इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब' 

कि लगाए न लगे और बुझाए न बने

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