Tuesday 12 July 2022

SEVERAL POETS, SEVERAL GHAZALS

इन आँखों ने क्या क्या तमाशा न देखा
हक़ीक़त में जो देखना था न देखा

तुझे देख कर वो दुई उठ गई है
कि अपना भी सानी न देखा न देखा

उन आँखों के क़ुर्बान जाऊँ जिन्हों ने
हज़ारों हिजाबों में परवाना देखा

बहुत दर्द-मंदों को देखा है तू ने
ये सीना ये दिल ये कलेजा न देखा

वो कब देख सकता है उस की तजल्ली
जिस इंसान ने अपना ही जल्वा न देखा

बहुत शोर सुनते थे इस अंजुमन का
यहाँ आ के जो कुछ सुना था न देखा

सफ़ाई है बाग़-ए-मोहब्बत में ऐसी
कि बाद-ए-सबा ने भी तिनका न देखा

उसे देख कर और को फिर जो देखे
कोई देखने वाला ऐसा न देखा

वो था जल्वा-आरा मगर तू ने मूसा
न देखा न देखा न देखा न देखा

गया कारवाँ छोड़ कर मुझ को तन्हा
ज़रा मेरे आने का रस्ता न देखा

कहाँ नक़्श-ए-अव्वल कहाँ नक़्श-ए-सानी
ख़ुदा की ख़ुदाई में तुझ सा न देखा

तिरी याद है या है तेरा तसव्वुर
कभी 'दाग़' को हम ने तन्हा न देखा



तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे
मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे

The weather of your city is lovely kind indeed. 
May I steal an 'eve,with you if you don't  mind indeed. 

तुम्हारे बस में अगर हो तो भूल जाओ मुझे
तुम्हें भुलाने में शायद मुझे ज़माना लगे

You may forget me if it's within your means. 
To forget you ' ll take me, time of a kind indeed. 

जो डूबना है तो इतने सुकून से डूबो
के आस-पास की लहरों को भी पता न लगे

If you want to drown, so silently sink. 
Even neighbouring waves don't find indeed. 

वो फूल जो मेरे दामन से हो गये मंसूब
ख़ुदा करे उन्हें बाज़ार की हवा न लगे

The flowers that are now part of my hem. 
Let not be subjected to  market wind indeed. 

न जाने क्या है किसी की उदास आँखों में
वो मुँह छुपा के भी जाये तो बेवफ़ा न लगे

I know not what's there in her sad eyes. 
Parting with veiled face, isn't unkind indeed. 

तू इस तरह से मिरे साथ बेवफ़ाई कर
कि तेरे बाद मुझे कोई बेवफ़ा न लगे

You be faithless with me to such an extent. 
None 'll look faithless of the grind indeed. 

तुम आँख मूँद के पी जाओ ज़िन्दगी "क़ैसर"
के एक घूँट में शायद ये बदमज़ा न लगे

O' Qaisar'! Gulp life with the eyes closed . 
May be , it's ill taste you won't mind indeed. 


अकेले हैं वो और झुँझला रहे हैं 
मिरी याद से जंग फ़रमा रहे हैं 

She is alone in an angry pose. 
At war with my memories pose.

ये कैसी हवा-ए-तरक़्क़ी चली है 
दिए तो दिए दिल बुझे जा रहे हैं 

What has developed in this wind? 
Not only lamps, even hearts foreclose. 

इलाही मिरे दोस्त हों ख़ैरियत से 
ये क्यूँ घर में पत्थर नहीं आ रहे हैं 

O God ! Welfare be with my friends. 
Why are stones not coming so close? 

बहिश्त-ए-तसव्वुर के जल्वे हैं मैं हूँ 
जुदाई सलामत मज़े आ रहे हैं 

Exhibited are heaven of thoughts and me. 
Separation be there, it's a pleasant dose. 

क़यामत के आने में रिंदों को शक था 
जो देखा तो वाइ'ज़ चले आ रहे हैं 

Drunkards had doubt, doom.' d come
In view was the priest coming so close. 

बहारों में भी मय से परहेज़ तौबा 
'ख़ुमार' आप काफ़िर हुए जा रहे हैं

Abstaining drinks in season of spring. 
'Khumaar' ! You are taking an infidel pose. 


दिल के बहलाने की तदबीर तो है 
तू नहीं है तिरी तस्वीर तो है 

There's something for heart to console. 
I have your picture, if not as a whole. 

हम-सफ़र छोड़ गए मुझ को तो क्या 
साथ मेरे मिरी तक़दीर तो है 

What if co-travellers left me alone. 
My desiny is there with me to roll. 

क़ैद से छूट के भी क्या पाया 
आज भी पाँव में ज़ंजीर तो है 

Still chains are klinging to my feet. 
What if I have come out of gaol? 

क्या मजाल उन की न दें ख़त का जवाब 
बात कुछ बाइस-ए-ताख़ीर तो है 

Why won't she answer my letter? 
Though there's some delay in the role. 

पुर्सिश-ए-हाल को वो आ ही गए 
कुछ भी हो इश्क़ में तासीर तो है 

She is here to know, how 
am I ? 
Love seems to have an effective role. 

ग़म की दुनिया रहे आबाद 'शकील' 
मुफ़्लिसी में कोई जागीर तो है 

O 'Shakeel' ! Let world of grief persist. 
There's an estate in poverty mole.

Translated by Ravi Maun. 

जयंती विशेष: 'आदमी जान के खाता है मोहब्बत में फ़रेब...' पढ़ें, ग़ज़लकार इक़बाल अज़ीम के अश'आर 
 आदमी जान के खाता है मोहब्बत में फ़रेब,ख़ुद-फ़रेबी ही मोहब्बत का सिला हो जैसे1/ 6

आदमी जान के खाता है मोहब्बत में फ़रेब,ख़ुद-फ़रेबी ही मोहब्बत का सिला हो जैसे

 यूँ सर-ए-राह मुलाक़ात हुई है अक्सर, उस ने देखा भी नहीं हम ने पुकारा भी नहीं2/ 6

यूँ सर-ए-राह मुलाक़ात हुई है अक्सर, उस ने देखा भी नहीं हम ने पुकारा भी नहीं


 हम बहुत दूर निकल आए हैं चलते चलते, अब ठहर जाएँ कहीं शाम के ढलते ढलते3/ 6

हम बहुत दूर निकल आए हैं चलते चलते, अब ठहर जाएँ कहीं शाम के ढलते ढलते

 अपनी मिट्टी ही पे चलने का सलीक़ा सीखो, संग-ए-मरमर पे चलोगे तो फिसल जाओगे4/ 6

अपनी मिट्टी ही पे चलने का सलीक़ा सीखो, संग-ए-मरमर पे चलोगे तो फिसल जाओगे


 अब हम भी सोचते हैं कि बाज़ार गर्म है, अपना ज़मीर बेच के दुनिया ख़रीद लें5/ 6

अब हम भी सोचते हैं कि बाज़ार गर्म है, अपना ज़मीर बेच के दुनिया ख़रीद लें

 ज़माना देखा है हम ने हमारी क़द्र करो,हम अपनी आँखों में दुनिया बसाए बैठे हैं 


आलम तिरी निगह से है सरशार देखना 

मेरी तरफ़ भी टुक तो भला यार देखना 

नादाँ से एक उम्र रहा मुझ को रब्त-ए-इश्क़ 

दाना से अब पड़ा है सरोकार देखना 

गर्दिश से तेरी चश्म के मुद्दत से हूँ ख़राब 

तिस पर करे है मुझ से ये इक़रार देखना 

नासेह अबस करे है मनअ मुझ को इश्क़ से 

आ जाए वो नज़र तो फिर इंकार देखना 

'चंदा' को तुम से चश्म ये है या अली कि हो 

ख़ाक-ए-नजफ़ को सुरमा-ए-अबसार देखना

..... मह लक़ा चंदर .  .... 


औरत हूँ मगर सूरत-ए-कोहसार खड़ी हूँ
फ़रहत ज़ाहिद

औरत हूँ मगर सूरत-ए-कोहसार खड़ी हूँ 
इक सच के तहफ़्फ़ुज़ के लिए सब से लड़ी हूँ 

I am a woman but stand like a mountain tall. 
For sanctity of truth, fought with one 'n all. 

वो मुझ से सितारों का पता पूछ रहा है 
पत्थर की तरह जिस की अँगूठी में जड़ी हूँ 

He is asking the address of stars from me. 
In whose ring I am studded as stone so small. 

अल्फ़ाज़ न आवाज़ न हमराज़ न दम-साज़ 
ये कैसे दोराहे पे मैं ख़ामोश खड़ी हूँ 

Neither word, nor voice, nor colleague nor cotuner. 
On what a two-way I am standing silent to call. 

इस दश्त-ए-बला में न समझ ख़ुद को अकेला 
मैं चोब की सूरत तिरे खे़मे में गड़ी हूँ 

फूलों पे बरसती हूँ कभी सूरत-ए-शबनम 

बदली हुई रुत में कभी सावन की झड़ी हूँ 


दिलों की राह पर आख़िर ग़ुबार सा क्यूँ है

थका थका मिरी मंज़िल का रास्ता क्यूँ है

सवाल कर दिया तिश्ना-लबी ने साग़र से
मिरी तलब से तिरा इतना फ़ासला क्यूँ है

जो दूर दूर नहीं कोई दिल की राहों पर
तू इस मरीज़ में जीने का हौसला क्यूँ है

कहानियों की गुज़रगाह पर भी नींद नहीं
ये रात कैसी है ये दर्द जागता क्यूँ है

अगर तबस्सुम-ए-ग़ुंचा की बात उड़ी थी यूँही
हज़ार रंग में डूबी हुई हवा क्यूँ है
Ravi Bhardwaj Ravi Bhardwaj
Mere Alfaz
नटखट "नेन" तनक सी पयिंया...
चलत जात पग छाइयां छाइयां ...

चली दर्शन को "राधा प्यारी" ...
छोड़ आईं घर द्वार पिछारी ...

रोके रुकत ना भागी जाए ...
हरी दर्शन को "प्यासी" हाय ...

किसी कली ने भी देखा न आँख भर के मुझे 


गुज़र गई जरस-ए-गुल उदास कर के मुझे 

मैं सो रहा था किसी याद के शबिस्ताँ में 
जगा के छोड़ गए क़ाफ़िले सहर के मुझे 

मैं रो रहा था मुक़द्दर की सख़्त राहों में 
उड़ा के ले गए जादू तिरी नज़र के मुझे 

मैं तेरे दर्द की तुग़्यानियों में डूब गया 
पुकारते रहे तारे उभर उभर के मुझे 

तिरे फ़िराक़ की रातें कभी न भूलेंगी 
मज़े मिले उन्हीं रातों में उम्र भर के मुझे 

ज़रा सी देर ठहरने दे ऐ ग़म-ए-दुनिया 
बुला रहा है कोई बाम से उतर के मुझे 

फिर आज आई थी इक मौज-ए-हवा-ए-तरब 
सुना गई है फ़साने इधर उधर के मुझे 




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