Thursday 7 July 2022

AFZAL KHAN.. GHAZAL.. US LAMHE TISHNAA-LAB RAIT BHI PAANII HOTII HAI.....

उस लम्हे तिश्ना-लब रेत भी पानी होती है 
आँधी चले तो सहरा में तुग़्यानी होती है 

नस्र में जो कुछ कह नहीं सकता शेर में कहता हूँ 
इस मुश्किल में भी मुझ को आसानी होती है 

जाने क्या क्या ज़ुल्म परिंदे देख के आते हैं 
शाम ढले पेड़ों पर मर्सिया-ख़्वानी होती है 

इश्क़ तुम्हारा खेल है बाज़ आया इस खेल से में 
मेरे साथ हमेशा बे-ईमानी होती है 

क्यूँ अपनी तारीख़ से नालाँ हैं इस शहर के लोग 
ढह देते हैं जो ता'मीर पुरानी होती है 

ये नुक्ता इक क़िस्सा-गो ने मुझ को समझाया 
हर किरदार के अंदर एक कहानी होती है 

इतनी सारी यादों के होते भी जब दिल में 
वीरानी होती है तो हैरानी होती है

No comments:

Post a Comment