Friday 22 July 2022

RAJESH REDDY.. GHAZAL..

अब क्या बताएँ टूटे हैं कितने कहाँ से हम 
ख़ुद को समेटते हैं यहाँ से वहाँ से हम 

How to tell where from, how much I had tear? 
I am gathering myself from here and there. 

क्या जाने किस जहाँ में मिलेगा हमें सुकून 
नाराज़ हैं ज़मीं से ख़फ़ा आसमाँ से हम 

I know not which world will give me solace. 
I am angry with earth and sky over here. 

अब तो सराब ही से बुझाने लगे हैं प्यास 
लेने लगे हैं काम यक़ीं का गुमाँ से हम 

Now I am quenching my thirst with mirage. 
Possibility is used as certainty over here. 

लेकिन हमारी आँखों ने कुछ और कह दिया 
कुछ और कहते रह गए अपनी ज़बाँ से हम 

My eyes have narrated a different tale. 
Though tongue said something else over here. 

आईने से उलझता है जब भी हमारा अक्स 
हट जाते हैं बचा के नज़र दरमियाँ से हम 

When my image isn't at par with mirror.
I get away from their midst over there. 

मिलते नहीं हैं अपनी कहानी में हम कहीं 
ग़ाएब हुए हैं जब से तिरी दास्ताँ से हम 

I can't  be traced even in my own story
 As I am missing from 
your tale over there. 

ग़म बिक रहे थे मेले में ख़ुशियों के नाम पर 
मायूस हो के लौटे हैं हर इक दुकाँ से हम 

Grief was sold at fair, in garb of pleasure. 
I have been disappointed at each shop there. 


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