Wednesday 24 August 2022

AZIIZ BAANO DAARAAB WAFAA.... COUPLETS

एक मुद्दत से ख़यालों में बसा है जो शख़्स 

ग़ौर करते हैं तो उस का कोई चेहरा भी नहीं 

 Since long one who in my thoughts has a place. 
When I closely perceive, doesn't have any face
 
 
मेरे हालात ने यूँ कर दिया पत्थर मुझ को 
देखने वालों ने देखा भी न छू कर मुझ को 

 My conditions have turned me into a stone. 
Those who saw, didn't touch me, had gone. 
 
 
चराग़ बन के जली थी मैं जिस की महफ़िल में 
उसे रुला तो गया कम से कम धुआँ मेरा 

 In whose assembly as a candle, I had shone. 
At least my smoke made 
him cry 'n had gone. 
 
 
अहमियत का मुझे अपनी भी तो अंदाज़ा है 
तुम गए वक़्त की मानिंद गँवा दो मुझ को 

 About my capacity I can also estimate. 
You just waste me as time, out of date. 
 
 
शिव तो नहीं हम फिर भी हम ने दुनिया भर के ज़हर पिए 
इतनी कड़वाहट है मुँह में कैसे मीठी बात करें 

 I am not Shiva but still gulped poisons of universe. 
With such bitterness in mouth, how sweetly converse? 
  
 
मैं ने ये सोच के बोए नहीं ख़्वाबों के दरख़्त 
कौन जंगल में उगे पेड़ को पानी देगा 

 I didn't plant trees of thoughts with this in mind. 
Who will  water the jungle tree, one of it's kind? 
  
 
हम ऐसे सूरमा हैं लड़ के जब हालात से पलटे 
तो बढ़ के ज़िंदगी ने पेश कीं बैसाखियाँ हम को 

 After fighting with conditions when I returned brave. 
The life came forward and to me, the crutches gave. 
  
 
ज़िंदगी के सारे मौसम आ के रुख़्सत हो गए 
मेरी आँखों में कहीं बरसात बाक़ी रह गई 

 All seasons of life came and had gone. 
In my eyes, rainy season was left alone. 
  
 
हम ने सारा जीवन बाँटी प्यार की दौलत लोगों में 
हम ही सारा जीवन तरसे प्यार की पाई पाई को 

 I distributed love goods in my life as a whole. 
Still I had longed for small bits of love as dole. 
 
 
ये हौसला भी किसी रोज़ कर के देखूँगी 
अगर मैं ज़ख़्म हूँ उस का तो भर के देखूँगी 

 Some day I will gather the courage and see. 
If I am his wound, then I will
 heal and see. 
  
 
कुरेदता है बहुत राख मेरे माज़ी की 
मैं चूक जाऊँ तो वो उँगलियाँ जला लेगा 

He scrapes ashes of my past so much. 
If I am miss, he 'll burn fingers as such. 
  
 
हमारी बेबसी शहरों की दीवारों पे चिपकी है 
हमें ढूँडेगी कल दुनिया पुराने इश्तिहारों में 

 
 Our helplessness is stuck on the city walls.
World will search for us in old poster stalls. 
 
हमें दी जाएगी फाँसी हमारे अपने जिस्मों में 
उजाड़ी हैं तमन्नाओं की लाखों बस्तियाँ हम ने 

 We will be hanged within our own  bodies in ire. 
We have ruined many hutments of nascent desire. 
  
 
मैं अपने जिस्म में रहती हूँ इस तकल्लुफ़ से 
कि जैसे और किसी दूसरे के घर में हूँ 

I live within my body with 
such regard.
As if living in else's house under guard 
 
 
मैं भी साहिल की तरह टूट के बह जाती हूँ 
जब सदा दे के बुलाता है समुंदर मुझ को 

 Me too runs fast like quivering shore of a stream. 
Whenever distant sea gives me a call to redeem. 
 
 
हम से ज़ियादा कौन समझता है ग़म की गहराई को 
हम ने ख़्वाबों की मिट्टी से पाटा है इस खाई को 

 Who can understand the depth of grief more than me? 
 I have covered this gap with the soil of dreams to see. 
 
शहर ख़्वाबों का सुलगता रहा और शहर के लोग 
बे-ख़बर सोए हुए अपने मकानों में मिले 

 City of dreams kept burning  and residents within. 
Sleepy, unconcerned in homes were  found therein. 
 
 
मैं किस ज़बान में उस को कहाँ तलाश करूँ 
जो मेरी गूँज का लफ़्ज़ों से तर्जुमा कर दे 

 In which language and where should I search? 
Who can translate my call in words to search? 
 
अपनी हस्ती का कुछ एहसास तो हो जाए मुझे 
और नहीं कुछ तो कोई मार ही डाले मुझ को 

 Let me have a feeling of some existence. 
If nothing else, let one kill me in pretense. 
   
मेरे अंदर एक दस्तक सी कहीं होती रही 
ज़िंदगी ओढ़े हुए मैं बे-ख़बर सोती रही 

 Somewhere within me 
there was a knock. 
With  life cover, I slept 
unaware of the stock. 
  
जाने कितने राज़ खुलें जिस दिन चेहरों की राख धुले 
लेकिन साधू-संतों को दुख दे कर पाप कमाए कौन 

 Many secrets will then encash, when from faces washes ash. 
 But imparting saints the pain, what sins are  for me to gain? 
 
आईना-ख़ाने में खींचे लिए जाता है मुझे 
कौन मेरी ही अदालत में बुलाता है मुझे 

Someone is dragging me within glasshouse. 
Who is calling me in my own court  house? 
 
मैं उस की धूप हूँ जो मेरा आफ़्ताब नहीं 
ये बात ख़ुद पे मैं किस तरह आश्कार करूँ 

 One who isn't my sun, that I am his light. 
How can I reveal it to myself
 in this light? 
 
उस ने चाहा था कि छुप जाए वो अपने अंदर 
उस की क़िस्मत कि किसी और का वो घर निकला 

 He wanted that within the self, he should conceal. 
Bad luck that it was another 's  house to reveal. 
 
चराग़ों ने हमारे साए लम्बे कर दिए इतने 
सवेरे तक कहीं पहुँचेंगे अब अपने बराबर हम 

 The lamps have stretched our shadows so much. 
We won't equal our size till the morning as such. 
 
तिश्नगी मेरी मुसल्लम है मगर जाने क्यूँ 
लोग दे देते हैं टूटे हुए प्याले मुझ को 

My thirst is wholesome, but I don't know why? 
People hand me over broken cups with a sigh.   
 
मुझे कहाँ मिरे अंदर से वो निकालेगा 
पराई आग में कोई न हाथ डालेगा 

Where from would he bring me out of my ire? 
No one will burn his fingers in another's fire. 
 
मिरे अंदर ढंडोरा पीटता है कोई रह रह के 
जो अपनी ख़ैरियत चाहे वो बस्ती से निकल जाए 

 Someone is beating the drum within me times and again. 
One who wants to be safe, simply leave this domain.  
 
ज़मीन मोम की होती है मेरे क़दमों में 
मिरा शरीक-ए-सफ़र आफ़्ताब होता है 

Earth under my feet is made of wax. 
Sun over head is companion, attacks. 
 
मुझे चखते ही खो बैठा वो जन्नत अपने ख़्वाबों की 
बहुत मिलता हुआ था ज़िंदगी से ज़ाइक़ा मेरा 

He lost the heaven of his dreams with my taste. 
Very much similar to the 
life was my own taste. 
  
ज़र्द चेहरों की किताबें भी हैं कितनी मक़्बूल 
तर्जुमे उन के जहाँ भर की ज़बानों में मिले 

How famous are books of yellow faces indeed? 
It's translations had many languages to feed. 
 
धूप मेरी सारी रंगीनी उड़ा ले जाएगी 
शाम तक मैं दास्ताँ से वाक़िआ हो जाऊँगी 

The sun will blow my colours as a whole.
By evening I will be an event in story role. 
  
इस घर के चप्पे चप्पे पर छाप है रहने वाले की 
मेरे जिस्म में मुझ से पहले शायद कोई रहता था 

 There's a print of the resident all over this place.  
 May be someone else lived within my body place. 
 
गए मौसम में मैं ने क्यूँ न काटी फ़स्ल ख़्वाबों की 
मैं अब जागी हूँ जब फल खो चुके हैं ज़ाइक़ा अपना 

Why didn't I harvest my dreams at last season's beep? 
The fruits have lost their taste, when I lost my sleep. 
 
ख़्वाब दरवाज़ों से दाख़िल नहीं होते लेकिन 
ये समझ कर भी वो दरवाज़ा खुला रक्खेगा 

 Although the dreams don't come through the open door. 
He knows it, but still will  keep open the door, all the more. 
 
उम्र भर रास्ते घेरे रहे उस शख़्स का घर 
उम्र भर ख़ौफ़ के मारे न वो बाहर निकला 

Life long the routes encircled his home. 
Life long, out of fear, he didn't leave home. 
 
ज़िंदगी भर मैं खुली छत पे खड़ी भीगा की 
सिर्फ़ इक लम्हा बरसता रहा सावन बन के 

 Life long I got soaked, standing on rooftop. 
Only for a moment, did 
he pour a raindrop. 
  
हम हैं एहसास के सैलाब-ज़दा साहिल पर 
देखिए हम को कहाँ ले के किनारा जाए 

We are on the shore of feeling flooded stream. 
Let's see where does the shore keep its esteem? 

वक़्त हाकिम है किसी रोज़ दिला ही देगा 
दिल के सैलाब-ज़दा शहर पे क़ब्ज़ा मुझ को 

Time is a judge, will someday grant. 
Control of flooded heart city implant. 
 
  
 
मिरे अंदर से यूँ फेंकी किसी ने रौशनी मुझ पर 
कि पल भर में मिरी सारी हक़ीक़त खुल गई मुझ पर 

 Someone from inside threw light on me in a way. 
 Within a moment my reality was revealed so to say. 
 
मैं उस के सामने उर्यां लगूँगी दुनिया को 
वो मेरे जिस्म को मेरा लिबास कर देगा 

 I 'll appear naked to the world before him. 
He ' ll make my body my garb with a whim. 
 
मैं किसी जन्म की यादों पे पड़ा पर्दा हूँ 
कोई इक लम्हे को इक दम से उठाता है मुझे 

I am a curtain of memories of some earlier life. 
Someone suddenly lifts it for a moment' s life. 
 
मेरी ख़ल्वत में जहाँ गर्द जमी पाई गई 
उँगलियों से तिरी तस्वीर बनी पाई गई 

In my vacuum, where some dust was found. 
With fingers my portrait was
 sketched around. 
 
चमन पे बस न चला वर्ना ये चमन वाले 
हवाएँ बेचते नीलाम रंग-ओ-बू करते 

 These gardeners didn't have the garden control. 
Or auction fragrance, colours, sell winds as a whole. 
 
मर के ख़ुद में दफ़्न हो जाऊँगी मैं भी एक दिन
सब मुझे ढूँडेंगे जब मैं रास्ता हो जाऊँगी 

One day I'll die, and be buried within me. 
When I be a path, all will search for me. 
 
मेरे अंदर कोई तकता रहा रस्ता उस का 
मैं हमेशा के लिए रह गई चिलमन बन के 

 Someone within me kept looking for him. 
I have become a drapery, always for him. 
 
वफ़ा के नाम पर तैरा किए कच्चे घड़े ले कर 
डुबोया ज़िंदगी को दास्ताँ-दर-दास्ताँ हम ने 

In the name of fidelity, we swam with uncooked pitchers. 
In story after story life was drowned by us in dithers. 
 
जब किसी रात कभी बैठ के मय-ख़ाने में 
ख़ुद को बाँटेगा तो देगा मिरा हिस्सा मुझ को 

 While sitting in a tavern in a lonely night. 
Doling  self, 'll give my share 
 to me, right. 
 
उस की हर बात समझ कर भी मैं अंजान रही 
चाँदनी रात में ढूँडा किया जुगनू वो भी 

 
 
 
कोई मौसम मेरी उम्मीदों को रास आया नहीं 

फ़स्ल अँधियारों की काटी और दिए बोती रही 

 
  
 
बुझा के रख गया है कौन मुझ को ताक़-ए-निस्याँ पर 

मुझे अंदर से फूंके दे रही है रौशनी मेरी 

 
  
 
हम ने सब को मुफ़्लिस पा के तोड़ दिया दिल का कश्कोल 

हम को कोई क्या दे देगा क्यूँ मुँह-देखी बात करें 

 
  
 
मैं फूट फूट के रोई मगर मिरे अंदर 

बिखेरता रहा बे-रब्त क़हक़हे कोई 

 
 
 
सुनने वाले मिरा क़िस्सा तुझे क्या लगता है 

चोर दरवाज़ा कहानी का खुला लगता है 

 
 
 
मैं शाख़-ए-सब्ज़ हूँ मुझ को उतार काग़ज़ पर 

मिरी तमाम बहारों को बे-ख़िज़ाँ कर दे 

 
 
 
किसी जनम में जो मेरा निशाँ मिला था उसे 

पता नहीं कि वो कब उस निशान तक पहुँचा 

 
  
 
वरक़ उलट दिया करता है बे-ख़याली में 

वो शख़्स जब मिरा चेहरा किताब होता है 

 
 
 
बिछड़ के भीड़ में ख़ुद से हवासों का वो आलम था 

कि मुँह खोले हुए तकती रहीं परछाइयाँ हम को 

 
  
 
हम मता-ए-दिल-ओ-जाँ ले के भला क्या जाएँ 

ऐसी बस्ती में जहाँ कोई लुटेरा भी नहीं 

 
 
 
टटोलता हुआ कुछ जिस्म ओ जान तक पहुँचा 

वो आदमी जो मिरी दास्तान तक पहुँचा 

 
  
 
लगाए पीठ बैठी सोचती रहती थी मैं जिस से 

वही दीवार लफ़्ज़ों की अचानक आ रही मुझ पर 

 
 
 
निकल पड़े न कहीं अपनी आड़ से कोई 

तमाम उम्र का पर्दा न तोड़ दे कोई 

 
 
 
आज कम-अज़-कम ख़्वाबों ही में मिल के पी लेते हैं, कल 

शायद ख़्वाबों में भी ख़ाली पैमाने टकराएँ लोग 

 
 
 
वो मिरा साया मिरे पीछे लगा कर खो गया 

जब कभी देखा है उस ने भीड़ में शामिल मुझे 

 
 
 
इक वही खोल सका सातवाँ दर मुझ पे मगर 

एक शब भूल गया फेरना जादू वो भी 

 
 
 
मैं अपने आप से टकरा गई थी ख़ैर हुई 

कि आ गया मिरी क़िस्मत से दरमियान में वो 

 
 
 
फ़साना-दर-फ़साना फिर रही है ज़िंदगी जब से 

किसी ने लिख दिया है ताक़-ए-निस्याँ पर पता अपना 

 
  
 
पकड़ने वाले हैं सब ख़ेमे आग और बेहोश 

पड़े हैं क़ाफ़िला-सालार मिशअलों के क़रीब 

 

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा के शेर

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एक मुद्दत से ख़यालों में बसा है जो शख़्स

ग़ौर करते हैं तो उस का कोई चेहरा भी नहीं

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    मेरे हालात ने यूँ कर दिया पत्थर मुझ को

    देखने वालों ने देखा भी छू कर मुझ को

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      चराग़ बन के जली थी मैं जिस की महफ़िल में

      उसे रुला तो गया कम से कम धुआँ मेरा

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        अहमियत का मुझे अपनी भी तो अंदाज़ा है

        तुम गए वक़्त की मानिंद गँवा दो मुझ को

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          शिव तो नहीं हम फिर भी हम ने दुनिया भर के ज़हर पिए

          इतनी कड़वाहट है मुँह में कैसे मीठी बात करें

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            मैं ने ये सोच के बोए नहीं ख़्वाबों के दरख़्त

            कौन जंगल में उगे पेड़ को पानी देगा

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              हम ऐसे सूरमा हैं लड़ के जब हालात से पलटे

              तो बढ़ के ज़िंदगी ने पेश कीं बैसाखियाँ हम को

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                ज़िंदगी के सारे मौसम के रुख़्सत हो गए

                मेरी आँखों में कहीं बरसात बाक़ी रह गई

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                  हम ही सारा जीवन तरसे प्यार की पाई पाई को

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                    ये हौसला भी किसी रोज़ कर के देखूँगी

                    अगर मैं ज़ख़्म हूँ उस का तो भर के देखूँगी

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                      कुरेदता है बहुत राख मेरे माज़ी की

                      मैं चूक जाऊँ तो वो उँगलियाँ जला लेगा

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                      हमारी बेबसी शहरों की दीवारों पे चिपकी है

                      हमें ढूँडेगी कल दुनिया पुराने इश्तिहारों में

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                        मैं जब भी उस की उदासी से ऊब जाऊँगी

                        तो यूँ हँसेगा कि मुझ को उदास कर देगा

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                          जिन को दीवार-ओ-दर भी ढक सके

                          इस क़दर बे-लिबास हैं कुछ लोग

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                            कहने वाला ख़ुद तो सर तकिए पे रख कर सो गया

                            मेरी बे-चारी कहानी रात भर रोती रही

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                              तमाम उम्र किसी और नाम से मुझ को

                              पुकारता रहा इक अजनबी ज़बान में वो

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                                मेरी तस्वीर बनाने को जो हाथ उठता है

                                इक शिकन और मिरे माथे पे बना देता है

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                                  वो ये कह कह के जलाता था हमेशा मुझ को

                                  और ढूँडेगा कहीं मेरे अलावा मुझ को

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                                    मैं रौशनी हूँ तो मेरी पहुँच कहाँ तक है

                                    कभी चराग़ के नीचे बिखर के देखूँगी

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                                      हमें दी जाएगी फाँसी हमारे अपने जिस्मों में

                                      उजाड़ी हैं तमन्नाओं की लाखों बस्तियाँ हम ने

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                                        मैं अपने जिस्म में रहती हूँ इस तकल्लुफ़ से

                                        कि जैसे और किसी दूसरे के घर में हूँ

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                                          जब सदा दे के बुलाता है समुंदर मुझ को

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                                            हम से ज़ियादा कौन समझता है ग़म की गहराई को

                                            हम ने ख़्वाबों की मिट्टी से पाटा है इस खाई को

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                                              शहर ख़्वाबों का सुलगता रहा और शहर के लोग

                                              बे-ख़बर सोए हुए अपने मकानों में मिले

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                                                मैं किस ज़बान में उस को कहाँ तलाश करूँ

                                                जो मेरी गूँज का लफ़्ज़ों से तर्जुमा कर दे

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                                                  अपनी हस्ती का कुछ एहसास तो हो जाए मुझे

                                                  और नहीं कुछ तो कोई मार ही डाले मुझ को

                                                    •  
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                                                    मेरे अंदर एक दस्तक सी कहीं होती रही

                                                    ज़िंदगी ओढ़े हुए मैं बे-ख़बर सोती रही

                                                      •  
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                                                      जाने कितने राज़ खुलें जिस दिन चेहरों की राख धुले

                                                      लेकिन साधू-संतों को दुख दे कर पाप कमाए कौन

                                                        •  
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                                                        आईना-ख़ाने में खींचे लिए जाता है मुझे

                                                        कौन मेरी ही अदालत में बुलाता है मुझे

                                                          •  
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                                                          मैं उस की धूप हूँ जो मेरा आफ़्ताब नहीं

                                                          ये बात ख़ुद पे मैं किस तरह आश्कार करूँ

                                                            •  
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                                                            उस ने चाहा था कि छुप जाए वो अपने अंदर

                                                            उस की क़िस्मत कि किसी और का वो घर निकला

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                                                              चराग़ों ने हमारे साए लम्बे कर दिए इतने

                                                              सवेरे तक कहीं पहुँचेंगे अब अपने बराबर हम

                                                                •  
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                                                                तिश्नगी मेरी मुसल्लम है मगर जाने क्यूँ

                                                                लोग दे देते हैं टूटे हुए प्याले मुझ को

                                                                  •  
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                                                                  मुझे कहाँ मिरे अंदर से वो निकालेगा

                                                                  पराई आग में कोई हाथ डालेगा

                                                                    •  
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                                                                    मिरे अंदर ढंडोरा पीटता है कोई रह रह के

                                                                    जो अपनी ख़ैरियत चाहे वो बस्ती से निकल जाए

                                                                      •  
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                                                                      ज़मीन मोम की होती है मेरे क़दमों में

                                                                      मिरा शरीक-ए-सफ़र आफ़्ताब होता है

                                                                        •  
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                                                                        मुझे चखते ही खो बैठा वो जन्नत अपने ख़्वाबों की

                                                                        बहुत मिलता हुआ था ज़िंदगी से ज़ाइक़ा मेरा

                                                                          •  
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                                                                          ज़र्द चेहरों की किताबें भी हैं कितनी मक़्बूल

                                                                          तर्जुमे उन के जहाँ भर की ज़बानों में मिले

                                                                            •  
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                                                                            धूप मेरी सारी रंगीनी उड़ा ले जाएगी

                                                                            शाम तक मैं दास्ताँ से वाक़िआ हो जाऊँगी

                                                                              •  
                                                                              •  
                                                                              •  
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                                                                              इस घर के चप्पे चप्पे पर छाप है रहने वाले की

                                                                              मेरे जिस्म में मुझ से पहले शायद कोई रहता था

                                                                                •  
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                                                                                गए मौसम में मैं ने क्यूँ काटी फ़स्ल ख़्वाबों की

                                                                                मैं अब जागी हूँ जब फल खो चुके हैं ज़ाइक़ा अपना

                                                                                  •  
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                                                                                  ख़्वाब दरवाज़ों से दाख़िल नहीं होते लेकिन

                                                                                  ये समझ कर भी वो दरवाज़ा खुला रक्खेगा

                                                                                    •  
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                                                                                    •  

                                                                                    उम्र भर रास्ते घेरे रहे उस शख़्स का घर

                                                                                    उम्र भर ख़ौफ़ के मारे वो बाहर निकला

                                                                                      •  
                                                                                      •  
                                                                                      •  

                                                                                      ज़िंदगी भर मैं खुली छत पे खड़ी भीगा की

                                                                                      सिर्फ़ इक लम्हा बरसता रहा सावन बन के

                                                                                        •  
                                                                                        •  
                                                                                        •  
                                                                                        •  

                                                                                        हम हैं एहसास के सैलाब-ज़दा साहिल पर

                                                                                        देखिए हम को कहाँ ले के किनारा जाए

                                                                                          •  
                                                                                          •  
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                                                                                          वक़्त हाकिम है किसी रोज़ दिला ही देगा

                                                                                          दिल के सैलाब-ज़दा शहर पे क़ब्ज़ा मुझ को

                                                                                            •  
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                                                                                            मिरे अंदर से यूँ फेंकी किसी ने रौशनी मुझ पर

                                                                                            कि पल भर में मिरी सारी हक़ीक़त खुल गई मुझ पर

                                                                                              •  
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                                                                                              मैं उस के सामने उर्यां लगूँगी दुनिया को

                                                                                              वो मेरे जिस्म को मेरा लिबास कर देगा

                                                                                                •  
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                                                                                                मैं किसी जन्म की यादों पे पड़ा पर्दा हूँ

                                                                                                कोई इक लम्हे को इक दम से उठाता है मुझे

                                                                                                  •  
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                                                                                                  मेरी ख़ल्वत में जहाँ गर्द जमी पाई गई

                                                                                                  उँगलियों से तिरी तस्वीर बनी पाई गई

                                                                                                    •  
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                                                                                                    चमन पे बस चला वर्ना ये चमन वाले

                                                                                                    हवाएँ बेचते नीलाम रंग-ओ-बू करते

                                                                                                      •  
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                                                                                                      मर के ख़ुद में दफ़्न हो जाऊँगी मैं भी एक दिन

                                                                                                      सब मुझे ढूँडेंगे जब मैं रास्ता हो जाऊँगी

                                                                                                        •  
                                                                                                        •  
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                                                                                                        मेरे अंदर कोई तकता रहा रस्ता उस का

                                                                                                        मैं हमेशा के लिए रह गई चिलमन बन के

                                                                                                          •  
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                                                                                                          डुबोया ज़िंदगी को दास्ताँ-दर-दास्ताँ हम ने

                                                                                                          •  
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                                                                                                          ख़ुद को बाँटेगा तो देगा मिरा हिस्सा मुझ को

                                                                                                            •  
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                                                                                                            चाँदनी रात में ढूँडा किया जुगनू वो भी

                                                                                                              •  
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                                                                                                              कोई मौसम मेरी उम्मीदों को रास आया नहीं

                                                                                                              फ़स्ल अँधियारों की काटी और दिए बोती रही

                                                                                                                •  
                                                                                                                •  
                                                                                                                •  
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                                                                                                                बुझा के रख गया है कौन मुझ को ताक़-ए-निस्याँ पर

                                                                                                                मुझे अंदर से फूंके दे रही है रौशनी मेरी

                                                                                                                  •  
                                                                                                                  •  
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                                                                                                                  हम ने सब को मुफ़्लिस पा के तोड़ दिया दिल का कश्कोल

                                                                                                                  हम को कोई क्या दे देगा क्यूँ मुँह-देखी बात करें

                                                                                                                    •  
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                                                                                                                    बिखेरता रहा बे-रब्त क़हक़हे कोई

                                                                                                                      •  
                                                                                                                      •  
                                                                                                                      •  

                                                                                                                      सुनने वाले मिरा क़िस्सा तुझे क्या लगता है

                                                                                                                      चोर दरवाज़ा कहानी का खुला लगता है

                                                                                                                        •  
                                                                                                                        •  
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                                                                                                                        मैं शाख़-ए-सब्ज़ हूँ मुझ को उतार काग़ज़ पर

                                                                                                                        मिरी तमाम बहारों को बे-ख़िज़ाँ कर दे

                                                                                                                          •  
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                                                                                                                          •  

                                                                                                                          किसी जनम में जो मेरा निशाँ मिला था उसे

                                                                                                                          पता नहीं कि वो कब उस निशान तक पहुँचा

                                                                                                                            •  
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                                                                                                                            वरक़ उलट दिया करता है बे-ख़याली में

                                                                                                                            वो शख़्स जब मिरा चेहरा किताब होता है

                                                                                                                              •  
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                                                                                                                              बिछड़ के भीड़ में ख़ुद से हवासों का वो आलम था

                                                                                                                              कि मुँह खोले हुए तकती रहीं परछाइयाँ हम को

                                                                                                                                •  
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                                                                                                                                ऐसी बस्ती में जहाँ कोई लुटेरा भी नहीं

                                                                                                                                  •  
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                                                                                                                                  वो आदमी जो मिरी दास्तान तक पहुँचा

                                                                                                                                    •  
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                                                                                                                                    लगाए पीठ बैठी सोचती रहती थी मैं जिस से

                                                                                                                                    वही दीवार लफ़्ज़ों की अचानक रही मुझ पर

                                                                                                                                      •  
                                                                                                                                      •  
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                                                                                                                                      निकल पड़े कहीं अपनी आड़ से कोई

                                                                                                                                      तमाम उम्र का पर्दा तोड़ दे कोई

                                                                                                                                        •  
                                                                                                                                        •  
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                                                                                                                                        आज कम-अज़-कम ख़्वाबों ही में मिल के पी लेते हैं, कल

                                                                                                                                        शायद ख़्वाबों में भी ख़ाली पैमाने टकराएँ लोग

                                                                                                                                          •  
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                                                                                                                                          वो मिरा साया मिरे पीछे लगा कर खो गया

                                                                                                                                          जब कभी देखा है उस ने भीड़ में शामिल मुझे

                                                                                                                                            •  
                                                                                                                                            •  
                                                                                                                                            •  

                                                                                                                                            इक वही खोल सका सातवाँ दर मुझ पे मगर

                                                                                                                                            एक शब भूल गया फेरना जादू वो भी

                                                                                                                                              •  
                                                                                                                                              •  
                                                                                                                                              •  

                                                                                                                                              मैं अपने आप से टकरा गई थी ख़ैर हुई

                                                                                                                                              कि गया मिरी क़िस्मत से दरमियान में वो

                                                                                                                                                •  
                                                                                                                                                •  
                                                                                                                                                •  

                                                                                                                                                फ़साना-दर-फ़साना फिर रही है ज़िंदगी जब से

                                                                                                                                                किसी ने लिख दिया है ताक़-ए-निस्याँ पर पता अपना

                                                                                                                                                  •  
                                                                                                                                                  •  
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                                                                                                                                                  पकड़ने वाले हैं सब ख़ेमे आग और बेहोश

                                                                                                                                                  पड़े हैं क़ाफ़िला-सालार मिशअलों के क़रीब

                                                                                                                                                    •  
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