Friday 14 October 2022

MIRZA HASAN NAASIR.. GHAZAL..

देखेंगे मेरी आहों के इक दिन असर को आप 

आएँगे लौट कर यहीं थामे जिगर को आप 

भीनी सी एक मद-भरी उड़ती सुगंध है 

खिलते गुलाब लाख हैं जाएँ जिधर को आप 

जो भी मिला है आप का दीवाना बन गया 

लेते हैं पल ही में चुरा दिल और जिगर को आप 

बैठे हैं आज कुछ यहाँ 'नासिर' रक़ीब भी 

दिल को ज़रा सँभाल के फेंकें इधर को आप 

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