Monday 5 December 2022

FARHAT EHSAAS.. GHAZAL..

रास्ते हम से राज़ कहने लगे 

फिर तो हम रास्तों में रहने लगे 

मेरे लफ़्ज़ों को मिल गई आँखें 

सारे आँसू लबों से बहने लगे 

शहर के लफ़्ज़ कर दिए वापस 

अपनी ज़ात अपनी बात कहने लगे 
Tribe
हम अभी ठीक से बने भी न थे 

ख़ुद से टकराए और ढहने लगे 

उस ने तल्क़ीन-ए-सब्र की थी सो हम 
Instructions for patience 
जो न सहना था वो भी सहने लगे 

हम ने मिट्टी की बेड़ियाँ काटीं 

तोड़ा ज़िंदान-ए-आब बहने लगे 
Prison of water
मुज़्दा ऐ सकिनान-ए-शहर-ए-सुख़न 
Good news/natives of city of poetry
'फ़रहत-एहसास' शे'र कहने लगे

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