Saturday 12 November 2022

BASHIR BADR.. GHAZAL

कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नज़र को ख़बर न हो 

मुझे एक रात नवाज़ दे मगर इस के बा'द सहर न हो 

वो बड़ा रहीम ओ करीम है मुझे ये सिफ़त भी अता करे 

तुझे भूलने की दुआ करूँ तो मिरी दुआ में असर न हो 

मिरे बाज़ुओं में थकी थकी अभी महव-ए-ख़्वाब है चाँदनी 

न उठे सितारों की पालकी अभी आहटों का गुज़र न हो 

ये ग़ज़ल कि जैसे हिरन की आँख में पिछली रात की चाँदनी 

न बुझे ख़राबे की रौशनी कभी बे-चराग़ ये घर न हो 

कभी दिन की धूप में झूम के कभी शब के फूल को चूम के 

यूँ ही साथ साथ चलें सदा कभी ख़त्म अपना सफ़र न हो 

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Comments 3

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H
Haroon Sheikh 1 months ago
Mere pas mere habib aa zara aur dil ke kareeb aa...
Tujhe dadhkanon main basa loon main ke bicharne ka kabhi dar na ho... . . . . . . yeh sher nahi hai is main thank u
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S
Sankalp Bohra 2 months ago
ये गज़ल है जैसे हिरन की आंखों में पिछली रात की चांदनी
ना बुझे खराबे की रौशनी, कभी बेचिराग ये घर ना हो

वो फ़िराक हो या विसाल हो, तेरी याद महकेगी एक दिन
वो गुलाब बन के खिलेगा क्या, जो चिराग बन के जला ना हो

कभी धूप दे, कभी बदलियां, दिलोज़ान से दोनो कुबूल हैं
मगर उस नगर में ना कैद कर, जहां ज़िन्दगी का हवा ना हो

कभी यूं मिलें कोई मसलेहत, कोई खौफ़ दिल में जरा ना हो
मुझे अपनी कोई खबर ना हो, तुझे अपना कोई पता ना हो

वो हजार बागों का बाग हो, तेरी बरकतो की बहार से
जहां कोई शाख हरी ना हो, जहां कोई फूल खिला ना हो

तेरे इख्तियार में क्या नहीं, मुझे इस तरह से नवाज दे
यूं दुआयें मेरी कूबूल हों, मेरे दिल में कोई दुआ ना हो

कभी हम भी इस के करीब थे, दिलो जान से बढ कर अज़ीज़ थे
मगर आज ऐसे मिला है वो, कभी पहले जैसे मिला ना हो

मेरे पास मेरे हबीब आ, जरा और दिल के करीब आ
तुझे धडकनों में बसा लूं मैं, कि बिछडने का कभी डर ना हो
  

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