Monday 7 November 2022

आवाज़ पर अश'आर.....

आवाज़ दे के देख लो शायद वो मिल ही जाए 
वर्ना ये उम्र भर का सफ़र राएगाँ तो है 
..... मुनीर नियाज़ी..... 

Call for him, may be he is found. 
Or the life journey is waste-bound. 

मोहब्बत सोज़ भी है साज़ भी है 
ख़मोशी भी है ये आवाज़ भी है 
..... अर्श मल्सियानी..... 

Love Is sorry, yet music bound. 
It's silence as well as  sound. 

ख़ुदा की उस के गले में अजीब क़ुदरत है 
वो बोलता है तो इक रौशनी सी होती है 
..... बशीर बद्र..... 

God gave in his throat, a strange nature. 
When he speaks, is glowing
 in stature. 

लहजा कि जैसे सुब्ह की ख़ुश्बू अज़ान दे 
जी चाहता है मैं तिरी आवाज़ चूम लूँ 
..... बशीर बद्र..... 

A morning prayer fragrance in it's style. 
I like to kiss your voice for a while. 
 
वो ख़ुश-कलाम है ऐसा कि उस के पास हमें 
तवील रहना भी लगता है मुख़्तसर रहना 
..... वज़ीर आग़ा..... 

He is so well spoken that while being with him. 
Even talking in details, appears to be trim slim. 

बोलते रहना क्यूँकि तुम्हारी बातों से 
लफ़्ज़ों का ये बहता दरिया अच्छा लगता है ..... अज्ञात..... 

Keep talking for from talks you know. 
It looks good like a river of words in flow. 

छुप गए वो साज़-ए-हस्ती छेड़ कर 
अब तो बस आवाज़ ही आवाज़ है 
...... असरार-उल-हक़ मजाज़..... 
 
He left setting instrument of life on play. 
What remains now is only voice in sway. 

तफ़रीक़ हुस्न-ओ-इश्क़ के अंदाज़ में न हो 
लफ़्ज़ों में फ़र्क़ हो मगर आवाज़ में न हो 
..... मंज़र लखनवी..... 

Let there be no difference in love 'n beauty style.
 Words may be different  but not the voice pile. 

मौत ख़ामोशी है चुप रहने से चुप लग जाएगी 
ज़िंदगी आवाज़ है बातें करो बातें करो 
..... अहमद मुश्ताक..... 

Death is silence, and silence will prevail. 
Life is sound, talk and talk in detail. 
  
गुम रहा हूँ तिरे ख़यालों में 
तुझ को आवाज़ उम्र भर दी है 
..... अहमद मुश्ताक़..... 

In your thoughts, I am always lost. 
I have called you for life as ghost. 

सब्र पर दिल को तो आमादा किया है लेकिन 
होश उड़ जाते हैं अब भी तिरी आवाज़ के साथ 
...... आसी उल्दनी...... 

Heart has agreed to endure
 the intent to fill. 
I lose my senses listening to your voice still. 
 
 
धीमे सुरों में कोई मधुर गीत छेड़िए 

ठहरी हुई हवाओं में जादू बिखेरिए 

परवीन शाकिर
 
 
फूल की ख़ुशबू हवा की चाप शीशे की खनक 

कौन सी शय है जो तेरी ख़ुश-बयानी में नहीं 

अज्ञात
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उस ग़ैरत-ए-नाहीद की हर तान है दीपक 

शोला सा लपक जाए है आवाज़ तो देखो 

मोमिन ख़ाँ मोमिन
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कोई आया तिरी झलक देखी 

कोई बोला सुनी तिरी आवाज़ 

जोश मलीहाबादी
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लय में डूबी हुई मस्ती भरी आवाज़ के साथ 

छेड़ दे कोई ग़ज़ल इक नए अंदाज़ के साथ 

अज्ञात
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तिरी आवाज़ को इस शहर की लहरें तरसती हैं 

ग़लत नंबर मिलाता हूँ तो पहरों बात होती है 

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
 
  
चराग़ जलते हैं बाद-ए-सबा महकती है 

तुम्हारे हुस्न-ए-तकल्लुम से क्या नहीं होता 

हामिद महबूब
टैग : ख़ुश-बयानी 
 
मैं जो बोला कहा कि ये आवाज़ 

उसी ख़ाना-ख़राब की सी है 

मीर तक़ी मीर
 
  
मेरी ये आरज़ू है वक़्त-ए-मर्ग 

उस की आवाज़ कान में आवे 

ग़मगीन देहलवी
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दर्द-ए-दिल पहले तो वो सुनते न थे 

अब ये कहते हैं ज़रा आवाज़ से 

जलील मानिकपूरी
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उस की आवाज़ में थे सारे ख़द-ओ-ख़ाल उस के 

वो चहकता था तो हँसते थे पर-ओ-बाल उस के 

वज़ीर आग़ा
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ये भी एजाज़ मुझे इश्क़ ने बख़्शा था कभी 

उस की आवाज़ से मैं दीप जला सकता था 

अहमद ख़याल
 
  
मुझ से जो चाहिए वो दर्स-ए-बसीरत लीजे 

मैं ख़ुद आवाज़ हूँ मेरी कोई आवाज़ नहीं 

असग़र गोंडवी

खनक जाते हैं जब साग़र तो पहरों कान बजते हैं 

अरे तौबा बड़ी तौबा-शिकन आवाज़ होती है 

अज्ञात
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रात इक उजड़े मकाँ पर जा के जब आवाज़ दी 

गूँज उट्ठे बाम-ओ-दर मेरी सदा के सामने 

मुनीर नियाज़ी
 
  
मैं उस को खो के भी उस को पुकारती ही रही 

कि सारा रब्त तो आवाज़ के सफ़र का था 

मंसूरा अहमद
 
  
हाथ जिस को लगा नहीं सकता 

उस को आवाज़ तो लगाने दो 

अम्मार इक़बाल
 
  
एक आवाज़ ने तोड़ी है ख़मोशी मेरी 

ढूँढता हूँ तो पस-ए-साहिल-ए-शब कुछ भी नहीं 

अलीमुल्लाह हाली
 
  
ख़ामोशी के नाख़ुन से छिल जाया करते हैं 

कोई फिर इन ज़ख़्मों पर आवाज़ें मलता है 

अमीर इमाम
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उस ग़ैरत-ए-नाहीद की हर तान है दीपक
शोला सा लपक जाए है आवाज़ तो देखो
..... मोमिन..... 

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